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सोच लो,फिर पछताओगे

सोमा सिंह ‘विशेष’
गाजियाबाद(उत्तरप्रदेश)
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बहुत हो गया रोना-धोना,
जड़ से मिट जाये ‘कोरोना।’
अब इसका प्रबन्ध करो,
बोरिया-बिस्तर बंद करो।
घर से निकलोगे नहीं जो तुम,
भागेगा कोरोना,दबा के दुम।
ठान लो इक्कीस दिन के लिए,
मिलना-मिलाना भूल जाओगे।
कोरोना के वाहक बनकर,
आगे नहीं पछताओगे।
गर छू बैठे हो भूले से भी,
सार्वजनिक वस्तु शीशा या द्वार।
धो लो साबुन से हाथ अपने,
रगड़-रगड़ कर बारम्बार।
पर भूलो न अनमोल है पानी,
व्यर्थ बहे न उसकी धार।
धैर्य धरो,विपदा से तरो,
घर पर ही रहो और काम करो।
हँसी-ठिठोली,कैरम-लूडो,
गपशप और आराम करो।
घर से जो निकले,कदम जो फिसले,
सोच लो फिर पछताओगे।
कोरोना से बचने का साधन,
और नहीं कर पाओगे॥

परिचय-सोमा सिंह का बसेरा उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में है। साहित्यिक उपनाम ‘विशेष’ है। ५ नवम्बर १९७३ को मेरठ में जन्मी सोमा सिंह को हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। रसायन विज्ञान में परास्नातक सोमा सिंह का कार्यक्षेत्र-शिक्षण(शिक्षक) का है। सामाजिक गतिविधि में आप पर्यावरणकर्मी हैं। इनकी लेखन विधा काव्य है। ‘मेरा पंछी'(कविता संग्रह)एवं आखर कुंज (साझा संग्रह)सहित विद्यालय की पत्रिका में भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। आपको सम्मान- पुरस्कार में स्वरचित कविता प्रतियोगिता में प्रथम स्थान मिला है। ब्लॉग पर भी सक्रिय सोमा सिंह की विशेष उपलब्धि शिक्षण तकनीक,विज्ञान व पर्यावरण शिक्षा के क्षेत्र में पुरस्कृत होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज,साहित्य व विज्ञान की सेवा करना है। इनके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना तथा प्रेरणापुंज-डॉ. अब्दुल कलाम साहब हैं। देश,साहित्य व विज्ञान की सेवा को जीवन लक्ष्य मानने वाली सोमा सिंह की विशेषज्ञता-प्रेरणादायी कविताएं हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“मैं अपने देश व हिंदी भाषा के समक्ष नतमस्तक हूँ।”

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