डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
****************************************************************************
सामाजिक सम्बन्ध और दूरी स्पर्धा विशेष………..
सहसा आयी आपदा, ‘कोरोना’ अभिशाप।
आपस में रख दूरियाँ,वरन् भोग संताप॥
प्राकृतिक अवसाद यह,छुआछूत का रोग।
सामाजिक सम्बन्ध को,बंद करें हम लोग॥
रखें हाथ निर्मल सदा,बार-बार धो हाथ।
सैनिटाइज हाथ को,तजें न अपना साथ।।
तकनीकी का ज़माना,मोबाइल का जाल।
रखें दूरियाँ दो गजी,होंगे सब खुशहाल॥
जानें सबकी कुशलता,दूरभाष संलाप।
डिजिटली सहयोग लें,सामाजिक हों आप॥
विपद काल हम एक हों,संघशक्ति सरताज़।
चलें साथ हम राष्ट्र हित,लड़ें एक आवाज़॥
महायुद्ध यह विश्व का,झेल रहे सब दंस।
महाशक्ति भी पस्त हैं,कोरोना रण कंस॥
कोरोना संकट विकट,मनुजलोक का काल।
अभिमानी शातीर वह,धरे पास के खाल॥
सदा हाथ से बन्धुता,संक्रामक दे साथ।
नाक कान मुख आँख को,करे संक्रमित हाथ॥
कोरोना की दुश्मनी,दूर स्वच्छ गृहवास।
सामाजिक रख दूरियाँ,अस्त्र बड़ा रख आस॥
दीन हीन क्षुधार्त जो,दें धन जल स्वरक्त।
ऑन लाइन है सुलभ,राष्ट्र भक्ति अनुरक्त॥
सामाजिक दूरी सदा,करता दृढ़ सम्बन्ध।
दूर वैर आपस कलह,प्रीति नीति अनुबन्ध॥
सहयोगी हर आपदा,सुख दु:ख में समवेत।
घृणा द्वेष उन्मुक्त हो,सदाचार उपवेत॥
स्वार्थनिरत दूरी इतर,छल प्रपंच आधार।
अर्थ दूर का है यहाँ,रोग मुक्त उपचार॥
भावी इस रणनीति से,हो सुखद परिणाम।
जंग लड़ें मिलकर यहाँ,कोराना अविराम॥
कुछ दिनों की बात बस,भागेगा यह रोग।
करें योग परिवार में,दें शासक सहयोग॥
ढकें मास्क मुख सर्वदा,शौचालय नित साफ।
रहें दूर शिशु वृद्धजन,करो न इसको माफ॥
पत्रकार नेता प्रजा,है सबका दायित्व।
आयी है मुश्किल घड़ी,रखो मनुज अस्तित्व॥
मायावी इस रोग से,पीड़ित सकल संसार।
लाखों की बलि ले चुका,उद्यत है संहार॥
कब्रिस्तान की है कमी,पड़ी लवारिस लाश।
रखो समाजिक दूरियाँ,मुक्ति रोग मन आश॥
बने पुनः सुरभित निकुंज,चहके खग मृदुगान।
बने विश्व फिर खुशनुमा,खिले खुशी मुस्कान॥
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥