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सबके बस की बात नहीं!

दृष्टि भानुशाली
नवी मुंबई(महाराष्ट्र) 
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आईए बताऊं आपको मेरी एक कहानी,
जल्दी उठकर देखा तो सुबह थी सुहानी।
सहसा खयाल आया,’आज लिखता हूँ एक कविता’, दरवाजे पर देखा तो आ गई झाडू लेकर सविता।

हाॅल में आकर बैठा तो,
कुकर महाशय ने बजाई सीटी।
रसोई घर में झाँककर देखा तो,
बन रहे थे चोखा और लिट्टी।

विषय तो नहीं सूझा किंतु सुझा दिया था सिर,
चल दिया घर से बाहर टालमटोल कर फिर।
घर के समीप देख बगीचा,सोचा जाकर बैठूँ!
खुली हवा में साँस लेकर अपनी कविता लिखूँ।

गुब्बारे वाले ने आकर मेरे कान में जो चिल्लाया,
पहली पंक्ति का ख्याल मेरे दिमाग से ही निकल गया।
‘गुब्बारे ले लो साहब’ कहकर ऐसे वह मुस्काया,
जैसे धूप में चलते राही को मिली हो पेड़ की छाया।

‘गुब्बारे नहीं जनाब,चाहिए थोड़े समय की शांति,
कहाँ बैठकर लिखूँ कविता,बताओ मेरे भाई!’
प्रभु शरण है उत्तम जगह,मंदिर को देख याद आया,
वहाँ का वातावरण शांत होगा,यह सोचकर वहाँ चला गया।

शंख-नाद की ध्वनि सुन,मैं वहीं पर थम गया,
घर की ओर ही कदम बढ़ाकर,निराश हो मैं लौट गया।
ताक मैं बैठी कलम की स्याही ठहाके लगाकर बोली,
‘शर्मा जी,कविता लिखना सबके बस की बात नहीं॥’

परिचय-दृष्टि जगदीश भानुशाली मेधावी छात्रा,अच्छी खिलाड़ी और लेखन की शौकीन भी है। इनकी जन्म तारीख ११ अप्रैल २००४ तथा जन्म स्थान-मुंबई है। वर्तमान पता कोपरखैरने(नवी मुंबई) है। फिलहाल नवी मुम्बई स्थित निजी विद्यालय में अध्ययनरत है। आपकी विशेष उपलब्धियों में शिक्षा में ७ पुरस्कार मिलना है,तो औरंगाबाद में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हुए फुटबाल खेल में प्रथम स्थान पाया है। लेखन,कहानी और कविता बोलने की स्पर्धाओं में लगातार द्वितीय स्थान की उपलब्धि भी है,जबकि हिंदी भाषण स्पर्धा में प्रथम रही है।

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