डॉ.अरविन्द जैन
भोपाल(मध्यप्रदेश)
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जीवन या आयु यानि जन्म से मृत्यु की अवधि को कहते हैं। आयु यानि शरीर आत्मा,मन और इन्द्रियों के संयोग है। हर व्यक्ति अपनी आयु सुखद चाहता है। शरीर के माध्यम से वह तप करके आत्मा से परमात्मा को प्राप्त कर सकता है। इसके लिए हमें धर्म के मर्म के अलावा दर्शन को जानना जरुरी है।
आध्यात्मिकता का किसी धर्म,संप्रदाय या मत से कोई संबंध नहीं है। आप अपने अंदर से कैसे हैं,आध्यात्मिकता इसके बारे में है। आध्यात्मिक होने का मतलब है, भौतिकता से परे जीवन का अनुभव कर पाना। अगर आप सृष्टि के सभी प्राणियों में भी उसी परम-सत्ता के अंश को देखते हैं, जो आपमें है,तो आप आध्यात्मिक हैं। आपको बोध है कि आपके दु:ख,क्रोध,क्लेश के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है,बल्कि खुद निर्माता हैं,तो आप आध्यात्मिक मार्ग पर हैं। आप जो भी कार्य करते हैं,अगर उसमें सभी की भलाई निहित है,तो आप आध्यात्मिक हैं। अगर अहंकार,क्रोध,नाराजगी, लालच,ईर्ष्या और पूर्वाग्रहों को गला चुके हैं,तो आप आध्यात्मिक हैं। बाहरी परिस्थितियां चाहे जैसी हों, उनके बावजूद भी अगर अपने अंदर से हमेशा प्रसन्न और आनंद में रहते हैं,तो आप आध्यात्मिक हैं। अगर आपको इस सृष्टि की विशालता के सामने खुद की स्थिति का एहसास बना रहता है तो,आध्यात्मिक हैं। आपके अंदर अगर सृष्टि के सभी प्राणियों के लिए करुणा फूट रही है,तो आप आध्यात्मिक हैं।
आध्यात्मिक होने का अर्थ है कि आप अपने अनुभव के धरातल पर जानते हैं कि मैं स्वयं ही अपने आनंद का स्रोत हूँ। आध्यात्मिकता मंदिर, मस्जिद या चर्च में नहीं,बल्कि आपके अंदर ही घटित हो सकती है। यह अपने अंदर तलाश के बारे में है। यह तो खुद के रूपांतरण के लिए है। यह उनके लिए है,जो जीवन के हर आयाम को पूरी जीवंतता के साथ जीना चाहते हैं। अस्तित्व में एकात्मकता व एकरूपता है और हर इंसान अपने-आपमें अनूठा है। इसे पहचानना और इसका आनंद लेना आध्यात्मिकता का सार है । अगर आप किसी भी काम में पूरी तन्मयता से डूब जाते हैं,तो आध्यात्मिक प्रक्रिया शुरू हो जाती है, चाहे वह काम झाड़ू लगाना ही क्यों न हो। किसी भी चीज को गहराई तक जानना आध्यात्मिकता है।
जी हाँ,प्रत्येक व्यक्ति को आध्यात्मिक होना जरूरी है। हर धर्म में आध्यात्मिक होने के बारे में बताया गया है। तरीके अलग हो सकते हैं लेकिन मकसद एक ही है। हमारे देश में प्राचीन काल में आश्रम में गुरु अपने छात्रों को पहले आध्यात्मिक शिक्षा ही देते थे। उसके बाद दूसरी शिक्षाएं शुरु होतीं थीं। कोई व्यापार की ओर,कोई राजनीति की ओर,तो कोई युद्ध विद्या की ओर जाता था।
महाभारत में एक प्रसंग आता है,जब गुरु द्रोणाचार्य एकलव्य का अंगूठा मांग लेते हैं। किसी ने नहीं समझा गुरु को, बस आज तक हम यही सोचकर द्रोणाचार्य को कोसते हैं कि उन्होंने अपने शिष्य का जीवन बर्बाद कर दिया,लेकिन उन्होंने अपना गुरु धर्म निभाया था। जिसने आध्यात्मिक शिक्षा नहीं ली और धनुर विद्या में निपुण हो गया, वह समाज के लिए खतरा बन सकता है। गुरु ने उसे तभी पहचान लिया,जब उसने एक भौंकने वाले कुत्ते का मुँह अपने बाणों से भर दिया था,वह अंदर से जंगली ही था।
आज यदि आतंकियों को परमाणु अस्त्र मिल जाए तो वह बिना सोचे- समझे उसका उपयोग करेंगे। आध्यात्मिक ज्ञान हमें समाज के प्रति जिम्मेदार बनाता है। आध्यात्मिक व्यक्ति किसी काम को करने से पहले उसके अच्छे व बुरे परिणाम के बारे में कई बार सोचेगा। यहां यह समझ लेना जरूरी है कि धार्मिक व्यक्ति और आध्यात्मिक व्यक्ति अलग-अलग होते हैं। धार्मिकता और कट्टर धार्मिकता की वजह से संसार का बहुत बुरा हुआ है। संसार में बड़े से बड़े हत्याकांड सिर्फ धार्मिकता की वजह से हुए। आध्यात्मिक व्यक्ति कभी भी किसी को सिर्फ इसलिए नहीं मार देगा कि,वह हमारे अनुसार नहीं जीता है,हमारे धर्म के अनुसार नहीं चलता है,हमारी तरह ईश्वर को नहीं पूजता है।
आध्यात्मिक व्यक्ति यह जानता है कि कैसे भी चलो,कहीं से भी यात्रा शुरू करो,पहुंचना तो अंत में वहीं है। फिर कैसा विवाद,विवाद हो ही नहीं सकता है। भारत आध्यात्म का जनक है। उसके लिए 'वसुधैव कुटुंबकम' है। आज धर्म का चिंतन संकीर्ण करके कट्टर धर्मान्धता को अपनाकर अशांति का वातावरण बना रहे हैं। इस कारण कोई सुखी नहीं है,पर आध्यात्म हमें सुखद अनुभूति देता हैं।
परिचय- डॉ.अरविन्द जैन का जन्म १४ मार्च १९५१ को हुआ है। वर्तमान में आप होशंगाबाद रोड भोपाल में रहते हैं। मध्यप्रदेश के राजाओं वाले शहर भोपाल निवासी डॉ.जैन की शिक्षा बीएएमएस(स्वर्ण पदक ) एम.ए.एम.एस. है। कार्य क्षेत्र में आप सेवानिवृत्त उप संचालक(आयुर्वेद)हैं। सामाजिक गतिविधियों में शाकाहार परिषद् के वर्ष १९८५ से संस्थापक हैं। साथ ही एनआईएमए और हिंदी भवन,हिंदी साहित्य अकादमी सहित कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। आपकी लेखन विधा-उपन्यास, स्तम्भ तथा लेख की है। प्रकाशन में आपके खाते में-आनंद,कही अनकही,चार इमली,चौपाल तथा चतुर्भुज आदि हैं। बतौर पुरस्कार लगभग १२ सम्मान-तुलसी साहित्य अकादमी,श्री अम्बिकाप्रसाद दिव्य,वरिष्ठ साहित्कार,उत्कृष्ट चिकित्सक,पूर्वोत्तर साहित्य अकादमी आदि हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-अपनी अभिव्यक्ति द्वारा सामाजिक चेतना लाना और आत्म संतुष्टि है।