दे दूँ वतन के वास्ते

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली ******************************************************************************* (रचनाशिल्प:२२१ २१२१ १२२१ २१२) दे दूँ वतन के नाम कलेजा निकाल कर, थाती शहादतों की रखी है संभाल करl आबाद हो गया है तू जुल्फों की छाँव में, गुज़रे हुए पलों पे कभी मत मलाल करl धरती वही,हवाएँ वही,चाँद भी वही, माज़ी को याद करके तू रिश्ता बहाल करl क्यों ज़हर … Read more

किसको बताएँ

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली *******************************************************************************  (रचना शिल्प:२२१२ २२१२ २२१२ २२१२) किसको बताएँ क्यों जहर जीवन में अब है भर गया, जलती हुई इस आग में वह राख सब कुछ कर गया। वादे सभी हैं खोखले,जब भी हवा थी कह रही, पर था समां ऐसा बना तब बिन कहे जग मर गया। थी जब चली उसकी सुनामी,बाँध … Read more

कोई कैसे समझे

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली ******************************************************************************* (रचनाशिल्प:१२२ १२२ १२२ १२२) कोई कैसे समझे मुसीबत हमारी, मुझे तो पता है विवशता तुम्हारी। सिमटती हुई रौशनी के सहारे, सफ़र है तुम्हारा अँधेरों में जारी। कभी मत कहो ये कि मजबूरियाँ हैं, अँधेरों से लड़ने की आई है बारी। अँधेरों से लड़ते रहे तुम अकेले, सभी सूरमाओं पे तुम ही … Read more

ब़ुत बनाकर

डॉ.अमर ‘पंकज’ दिल्ली ******************************************************************************* (रचना शिल्प:२१२२ २१२२ २१२२) ब़ुत बनाकर रोज ही तुम तोड़ते हो, कर चुके जिसको दफ़न क्यों कोड़ते हो। अब बता दो कौन सी बाक़ी कसक है, आज फिर क्यों सर्द साँसें छोड़ते हो। ख़्वाब सबने तो सुहाने ही दिखाए, बन गई नासूर यादें फोड़ते हो। एक मन मंदिर बना लो उस … Read more