कुल पृष्ठ दर्शन : 265

You are currently viewing कोई कैसे समझे

कोई कैसे समझे

डॉ.अमर ‘पंकज’
दिल्ली
*******************************************************************************

(रचनाशिल्प:१२२ १२२ १२२ १२२)

कोई कैसे समझे मुसीबत हमारी,
मुझे तो पता है विवशता तुम्हारी।

सिमटती हुई रौशनी के सहारे,
सफ़र है तुम्हारा अँधेरों में जारी।

कभी मत कहो ये कि मजबूरियाँ हैं,
अँधेरों से लड़ने की आई है बारी।

अँधेरों से लड़ते रहे तुम अकेले,
सभी सूरमाओं पे तुम ही हो भारी।

अँधेरों से कह दो सिमट जाए खुद में,
च़रागों की लौ से अमावस भी हारी।

सुबह हो रही है परिन्दे भी चहके,
हवाएँ दिखाएँ जो फिर बेकरारी।

सलीके से उसने दिया सबको धोखा,
सफ़र में है बेचैन हर इक सवारी।

ग़ज़ल कह रहे हो ‘अमर’ उस जगह तुम,

लुटी जा रही है जहाँ आज नारी॥

परिचय-डॉ.अमर ‘पंकज’ (डॉ.अमर नाथ झा) की जन्म तारीख १४ दिसम्बर १९६३ है।आपका जन्म स्थान ग्राम-खैरबनी, जिला-देवघर(झारखंड)है। शिक्षा पी-एच.डी एवं कर्मक्षेत्र दिल्ली स्थित महाविद्यालय में असोसिएट प्रोफेसर हैं। प्रकाशित कृतियाँ-मेरी कविताएं (काव्य संकलन-२०१२),संताल परगना का इतिहास लिखा जाना बाकी है(संपादित लेख संग्रह),समय का प्रवाह और मेरी विचार यात्रा (निबंध संग्रह) सहित संताल परगना की आंदोलनात्मक पृष्ठभूमि (लघु पाठ्य-पुस्तिका)आदि हैं। ‘धूप का रंग काला है'(ग़ज़ल-संग्रह) प्रकाशनाधीन है। आपकी रुचि-पठन-पाठन,छात्र-युवा आंदोलन,हिन्दी और भारतीय भाषाओं को प्रतिष्ठित कराने हेतु लंबे समय से आंदोलनरत रहना है। विगत ३३ वर्षों से शोध एवं अध्यापन में रत डॉ.अमर झा पेशे से इतिहासकार और रूचि से साहित्यकार हैं। आप लगभग १२ प्रकाशित पुस्तकों के लेखक हैं। इनके २५ से अधिक शोध पत्र विभिन्न राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। ग़ज़लकारों की अग्रिम पंक्ति में आप राष्ट्रीय स्तर के ख्याति प्राप्त ग़ज़लगो हैं। सम्मान कॆ नाते भारतीय भाषाओं के पक्ष में हमेशा खड़ा रहने हेतु ‘राजकारण सिंह राजभाषा सम्मान (२०१४,नई दिल्ली) आपको मिला है। साहित्य सृजन पर आपका कहना है-“शायर हूँ खुद की मर्ज़ी से अशआर कहा करता हूँ,कहता हूँ कुछ ख़्वाब कुछ हक़ीक़त बयां करता हूँ। ज़माने की फ़ितरत है सियासी-सितम जानते हैं ‘अमर’ सच का सामना हो इसीलिए मैं ग़ज़ल कहा करता हूँ।”

Leave a Reply