कलम की दु:खभरी दास्तां

डॉ.रामावतार रैबारी मकवाना ‘आज़ाद पंछी’  भरतपुर(राजस्थान) ************************************************************************************************ सोच रही है पागल कलम,कैसी दुनिया आई है, लाज-शर्म के शब्द भूलकर,बे-शब्दों की झड़ी लगाई है पड़ी तमाशा देख रही हूँ,ऐसी धाक जमाई है, लुप्त हो रही मैं तो मेरे घर में,मुझ पर ऐसी शामत आई हैl सोच रही… मेरे कारण तू इंसान बना,फिर महान बना, इस भरी … Read more