पृथ्वी हूँ मैं
असित वरण दास,बिलासपुर(छत्तीसगढ़)*********************************************** पृथ्वी हूँ मैं,मौन रहतीएक नीलेपन में,चंचल रहतीछलछल बहती शिशु नदी में।निःस्तब्ध देखती,पर्वत शिखर परसूर्यकिरणों का,निर्बाक उत्तरणअभिमानी वर्फ़ का,पिघलकर यूँ हीएक नदी में,अनायास रूपांतरण।देखती रहती,पर्वत शिखर से अग्नि उदगारअंतस सलिला में अहंकार का,विलय निरंतर।वृक्ष जितने हैं मेरे,बाहु बंधन मेंहै आश्रय,जीवन रक्षक,मेरे ही अचूक मूल मंत्र में।उठाया कुठार तुमने औरलहू बहाया वृक्ष वक्ष से।नदी,झील … Read more