पृथ्वी हूँ मैं

असित वरण दास,बिलासपुर(छत्तीसगढ़)*********************************************** पृथ्वी हूँ मैं,मौन रहतीएक नीलेपन में,चंचल रहतीछलछल बहती शिशु नदी में।निःस्तब्ध देखती,पर्वत शिखर परसूर्यकिरणों का,निर्बाक उत्तरणअभिमानी वर्फ़ का,पिघलकर यूँ हीएक नदी में,अनायास रूपांतरण।देखती रहती,पर्वत शिखर से अग्नि उदगारअंतस सलिला में अहंकार का,विलय निरंतर।वृक्ष जितने हैं मेरे,बाहु बंधन मेंहै आश्रय,जीवन रक्षक,मेरे ही अचूक मूल मंत्र में।उठाया कुठार तुमने औरलहू बहाया वृक्ष वक्ष से।नदी,झील … Read more

सारे मिले हुए प्रकृति में

सविता सिंह दास सवितेजपुर(असम) ************************************************************************ बहुत शोर करती है चिड़िया,सुबह-सुबह जब देखे धूपहवा भी मन्द-मन्द चल पड़ती है,मौसम के बिल्कुल अनुरूपlगाय,बकरी,कुत्ते,बिल्ली,सारे उठकर चल पड़ते हैंमुझे लगता है ये सारे चराचर,बिन वेतन रोज़गार करते हैंlबादल से कौन कहता है,संग हवा के उड़ते रहोकिनारों से कहा रुकने को,और नदी से कहा बहते रहोlबड़े ढीठ हैं पहाड़-पर्वत,ज़िद्दी बच्चे के … Read more