मेरा गाँव
महेन्द्र देवांगन ‘माटी’ पंडरिया (कवर्धा )छत्तीसगढ़ ************************************************** शहरों की अब हवा लग गई, कहां खो गया मेरा गाँव। दौड़-धूप की जिंदगी हो गई, चैन कहां अब मेरा गाँव। पढ़-लिखकर होशियार हो गये, निरक्षर नहीं है मेरा गाँव। गली-गली में नेता हो गए, पार्टी बन गया है मेरा गाँव। भूल रहे सब रिश्ते-नाते, संस्कार खो रहा … Read more