नापाकी तज स्वार्थ मन

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** झूठ कपट कलि अस्त्र से,हारा अब परमार्थ। राष्ट्रद्रोह फन तान कर,राजनीति डस स्वार्थll वतन परस्ती में फ़िदा,देते जान जवान। बन प्रबुद्ध द्रोही वतन,घूम रहे शैतानll लानत है उस जिंदगी,रह खाते जिस देश। देश तोड़ने में लगे,दे नफ़रत संदेशll लाभ उठा मासूमियत,दीन-दुखी इन्सान। जाति धर्म भाषा विविध,लड़ा रहे शैतानll … Read more

बधाई

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** चन्द्रयान आकाश में,सफल उड़ा अभियान। अभिनंदन-बधाईयाँ,वैज्ञानिक सम्मानll भारत जन-मन है मुदित,कृतज्ञ बना विज्ञान। जीत निशाकर दूर नहीं,पूर्ण हुआ अरमानll साधुवाद वैज्ञानिकों,हमें आप पर नाज। भारत है अब विश्व में,अंतरिक्ष सरताज़ll पुलकित हम साफल्य से,चन्द्रयान-दो आज। जनमानस बधाईयाँँ,हो भारत समाजll दे निकुंज का कवि हृदय,साश्रु मुदित अभिमान। वर्धापन वैज्ञानिकों,आप … Read more

नमन कारगिल के शहीदों को

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** कारगिल विजय दिवस स्पर्धा विशेष………. बार-बार भी हार कर,पाकी नहीं सुधार। पीछे से फिर कारगिल,आतंकी सह वारll सियाचिन अरु ग्लेशियर,जब बर्फिली साज। गद्दारी की पाक बन,घुसपैठी हिमराज॥ काँप रहे थे गात्र जब,जीरो नीचे ठंड। आतंकी सेना चढ़ी,भारत करने खण्ड॥ चली बसें सदभावना,भारत से लाहौर। बदले में घुसपैठ कर,पाक … Read more

निभाने चला हूँ मैं

कैलाश झा ‘किंकर’ खगड़िया (बिहार) ************************************************************************************ पत्थर पे आज दूब जमाने चला हूँ मैं, मुमकिन यहाँ है कुछ भी तो गाने चला हूँ मैं। जो चीज दूर थी वो निकट आ गयी है अब, इक्कीसवीं सदी से निभाने चला हूँ मैं। तालीम की न फिक्र जहाँ है समाज को, उस गाँव में खुशी से पढ़ाने … Read more

वर्षा रानी चारुतम

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** वर्षा रानी चारुतम,सज सोलह श्रृंगार। पीर गमन व्याकुल हृदय,मेघ नैन जलधार॥ विद्युत नभ क्रन्दन करे,सुता विदाई शोक। नील गगन दुहिता विरह,अश्क नैन बिन रोक॥ चमक व्योम नित बिजुरिया,वाद्य यंत्र शुभगान। स्वागतार्थ भू है खड़ी,वृष्टि वधू सम्मान॥ मातु-पिता प्रिय गेह को,तज वर्षा मन घोर। मन मयूर होता मुदित,मिलन प्रीत … Read more

दुश्मन हम ख़ुद प्रकृति के

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** जल प्लावन आधी धरा,शेष शुष्क बदरंग। महाकाल धन जन जमीं,जलज बिखेरे जंग॥ जान माल बेघर प्रजा,बाढ़ त्रस्त निर्दोष। रोग शोक प्रसरित धरा,त्राहि-त्राहि उदघोष॥ दुश्मन हम ख़ुद प्रकृति के,कर्तन तरु पाषान। निजहित में हम भर सरित,आपद खुद हम जान॥ धन कुबेर तो महल में,आपद में बस आम। फेंक रोटियाँ … Read more

देश विरोधी बदजुबां

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** लघु जीवन संसार में,सज बाज़ार जम़ात। वतन फ़िदा होंगे सभी,राष्ट्रधर्म ज़ज़्बातll सुलग रहा फिर गैंग वह,लौटाने सम्मान। खतरा उनको दिख स्वयं,हिफ़ाजत ए आनll पाये जो सारी खुशी,पूरे सब अरमान। उसी राष्ट्र में आज वे,कहते निज अपमानll झोली भर दे गालियाँ,नित भारत सरकार। पर बाधित उनकी नज़र,अभिभाषण अधिकारll रायसीना … Read more

लगा रोग हरिनाम का

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** रे मन भज जगदीश को,शरणागत हरिनाम। तिलक भाल श्रीखण्ड का,पीताम्बर अभिरामll नारायण शारंगधर,भक्तिप्रेम सुखधाम। पीताम्बर गोलोक सुख,पावन हो विश्रामll रमा चित्त हरि भजन में,भवसागर हों पार। कहाँ फँसा माया जगत,राम नाम जग सारll लगा रोग हरिनाम का,क्या जीवन संसार। रमता मन निर्मल बने,जीवन का आधार॥ प्रेम सदा अनमोल … Read more

कँटीले अल्फ़ाज़ ए नूर

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’ बेंगलुरु (कर्नाटक) **************************************************************************** भौतिक मायाजाल फँस,रिश्ते होते दूर। धन-वैभव छल झूठ में,कहाँ मिलेगी नूरll लुब्ध श्वान खल सर्प का,क्या उसूल ज़ज़्बात। रिश्ते हैं बस स्वार्थ के,वरन लगाए घातll बदचलन नित बदजुबां,नाशक घर परिवार। विवेकहीन असंयमित,बिखराता संसारll मृदुल प्रकृति नित संयमित,विनयशील व्यवहार। मधुरिम हो वाणी श्रवण,अपनापन जग सारll सोच सदा अनुकूल हो,नियति … Read more

तेरे बगैर जीने की चाहत कभी न की

कैलाश झा ‘किंकर’ खगड़िया (बिहार) ************************************************************************************ (रचनाशिल्प: २२१२ १२१२ २२१२ १२) तेरे बगैर जीने की चाहत कभी न की, मैंने यहाँ कभी किसी से आशिकी न की। मुझको पसंद है वही अब आपकी पसंद, सच मानिए तो मैंने भी ग़लती बड़ी न की। आएँ हुजूर आपका स्वागत है हर घड़ी, उस बार आपसे तो मैंने … Read more