किसान(मर्सिया)

शैलेश गोंड’विकास मिर्ज़ापुरी’ बनारस (उत्तर प्रदेश) ************************************************************************ (रचना शिल्प:फाएलातुन,फाएलातुन,फाएलातुन,फाएलुन) खेत में सूखा पड़ा था,अब्र में बरखा नहीं। थी किसानों को ज़रूरत तो फ़लक बरसा नहीं। आज फसलें पक गई जब,तू जरा ठहरा नहीं, हो गई बर्बाद फ़स्लें,फिर भी तू तड़पा नहीं। अब रुलाएगी सियासत खून के आँसू हमें, फिर से ले के आएगी वो,थाली में … Read more

बताओ माँ,मेरे दामन में हिस्से क्यों नहीं आते ?

शैलेश गोंड’विकास मिर्ज़ापुरी’ बनारस (उत्तर प्रदेश) ************************************************************************ खुदी चलकर बहाने से ये रस्ते क्यों नहीं आते। घरानों से मिरी बेटी को रिश्ते क्यों नहीं आतेl पराई थीं,पराई हूँ,पराई ही,रहूँगी मैं, बताओ माँ,मेरे दामन में हिस्से क्यों नहीं आते। मुझे तालीम लेने की बड़ी हसरत ज़िगर में है, मग़र चालीस रुपये में ये बस्ते क्यों नहीं … Read more