वाह री जिन्दगी

नताशा गिरी  ‘शिखा’  मुंबई(महाराष्ट्र) ********************************************************************* अब सब अपना पलड़ा झाड़ रहे हैं, अपने अस्तित्व को ही न जाने किस रंग में ढाल रहे हैं। दिलचस्पी रही न अब राधा या श्री राम में, दो जून की रोटी के आगे पिज्जा-बर्गर निहार रहे हैं। सास-बहू के नाटक ने रामायण का पाठ भुलाया है, रूद्राभिषेक किसे कहते … Read more

तुझ जैसी इक माँ…

नताशा गिरी  ‘शिखा’  मुंबई(महाराष्ट्र) ********************************************************************* मातृ दिवस स्पर्धा विशेष………… माँ, मुझमें भी तो जिन्दा है तुझ जैसी ही इक माँ। हाँ माँ, मुझमें भी तो जिन्दा है तुझ जैसी ही इक माँ। माना, माना परिधान बदल दिया है,साड़ी की जगह अब जीन्स ने ली है, क्या परिधान मात्र से मेरा वजूद खतरों में बतलायेंगे। देखो, … Read more

पोरस

नताशा गिरी  ‘शिखा’  मुंबई(महाराष्ट्र) ********************************************************************* जो जीता वही सिकन्दर इस मिथ्या को कब तक तुम गाओगे, पोरस की विजयगीत को इतिहास के पन्नों में कब तक यूँ छिपाओगे। सिन्धु नदी और झेलम ने फिर पोरस को पुकारा है, उन इतिहासकारों की चाटुकारिकता को देखो कितना धिक्कारा है। मुद्राराक्षस के पन्नों को कभी तुम टटोल लो, … Read more

नहीं करें प्रकृति का क्षरण

नताशा गिरी  ‘शिखा’  मुंबई(महाराष्ट्र) ********************************************************************* विश्व धरा दिवस स्पर्धा विशेष……… मौत का कैसा समां,दिखा रहा है क्यूँ ख़ुदा, प्रकृति के नजारे,क्यूँ कुपित लगे हैं सारे। बादल गरज रहे हैं,कहीं प्यासी तड़पती धरती, बिलख रहे हैं मासूम यहाँ पे,वहां पे बाढ़ आई। तबाही का खेल खेले,लाशों के ढेर इतने, दफनाने को जगह नहीं,सर छुपाने को घर … Read more