शीशे का खिलौना

अर्चना पाठक निरंतर अम्बिकापुर(छत्तीसगढ़) ***************************************************************************** शीशे का खिलौना हूँ, गिर के टूट जाता हूँ। दिल पे लगी जो पत्थर, चूर-चूर होता हूँ। देखी बिकी मोहब्बत, दिल फेंक अदाएँ भी। करती रही है दावा, कसमें दे वफाएँ भी। फूलों का बिछौना हूँ, काँटे भी चुभाता हूँ। शीशे का खिलौना हूँ, गिर के टूट जाता हूँ। यादों में … Read more