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शीशे का खिलौना

अर्चना पाठक निरंतर
अम्बिकापुर(छत्तीसगढ़)
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शीशे का खिलौना हूँ,
गिर के टूट जाता हूँ।
दिल पे लगी जो पत्थर,
चूर-चूर होता हूँ।

देखी बिकी मोहब्बत,
दिल फेंक अदाएँ भी।
करती रही है दावा,
कसमें दे वफाएँ भी।

फूलों का बिछौना हूँ,
काँटे भी चुभाता हूँ।
शीशे का खिलौना हूँ,
गिर के टूट जाता हूँ।

यादों में उभरती है,
भूली हुई तस्वीरें।
कब से इसे है ढूँढे,
खोई हुई तकदीरें।

गीतों का तराना हूँ,
टूूटी तान गाता हूँ।
शीशे का खिलौना हूँ,
गिर के टूट जाता हूँ।

दिल में छुपी है मेरी,
खामोश-सी साँसें भी।
कैसे छवि दिखे तेरी।
दुनिया की निगाहें भी।

सुन के जहां के ताने,
चुपके से सिसकता हूँ।
शीशे का खिलौना हूँ,
गिर के टूट जाता हूँ।

नभ का है रंग नीला,
आधा चाँद दिखता है।
कहने को कहाँ दिन में,
कभी चाँद निकलता है।

सांझ सुनहरी देख के,
प्रेम गीत सुनाता हूँ।
शीशे का खिलौना हूँ,
गिर के टूट जाता हूँ॥

परिचय-अर्चना पाठक का साहित्यिक उपनाम-निरन्तर हैl इनकी जन्म तारीख-१० मार्च १९७३ तथा जन्म स्थान-अम्बिकापुर(छत्तीसगढ़)हैl वर्तमान में आपका स्थाई निवास अंबिकापुर में है। हिन्दी,अंग्रेजी और संस्कृत भाषा जाने वाली अर्चना पाठक छत्तीसगढ़ से ताल्लुक रखती हैंl स्नातकोत्तर (रसायन शास्त्र),एलएलबी सहित बी.एड. शिक्षा प्राप्त की हैl कार्यक्षेत्र-नौकरी(व्याख्याता)हैl सामाजिक गतिविधि के निमित्त बालिका शिक्षा के लिए सतत प्रयास में सक्रिय अर्चना जी साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ी हुई हैंl इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी, लेख,गीत और ग़ज़ल हैl प्रकाशनाधीन साझा संग्रह हैl पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई है तो आकाशवाणी(अंबिकापुर) से कविता पाठ का निरन्तर प्रसारण होता है। आपको प्राप्त सम्मान में साहित्य रत्न-२०१८,साहित्य सारथी सम्मान- २०१८ और कवि चौपाल शारदा सम्मान हैl इनकी लेखनी का उद्देश्य-समसामयिक समस्याओं को उजागर कर समाजसेवा में भागीदारी अपनी लेखन कला का विकास एवं सक्रियता बनाये रखना है। आपकी पसंदीदा हिंदी लेखक-श्रीमती महादेवी वर्मा है,तो प्रेरणा पुंज-माता-पिता हैं। अर्चना जी का सबके लिए संदेश यही है-मन की सुनते जाओ,जो तुमको अच्छा लगता हो वही करो,जबरदस्ती में किया गया कार्य खूबसूरत नहीं होता है। विशेषज्ञता-कविता लेखन है।

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