मैं हरी दूब…
सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली देहरादून( उत्तराखंड) ******************************************************* मैं हरी दूब इस माटी की, सदा हरी-भरी ही रहती हूँ। कितना कुचलो और दबाओ, फिर भी बढ़ती रहती हूँ। सीना ताने खड़े पेड़ जो, आँधी से गिर जाते हैं। गर्व है उनको ऊँचे हैं वो, इसीलिए ढह जाते हैं। आँधी आये या आये सुनामी, मैं शांत चित्त हो … Read more