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फुर्सत

सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली
देहरादून( उत्तराखंड)
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कहने को तो फ़ुर्सत में हैं,
लेकिन मुझे तो फुर्सत नहीं।
आज फ़ुर्सत को बैठाया कोने,
तब मुझे फ़ुर्सत ये मिली।

इतनी व्यस्त रहती हूँ घर में,
साँस लेने की फुर्सत नहीं।
कैसे होते होंगे वो जिन्हें,
फुर्सत ही फुर्सत रही।

सोचा था फ़ुर्सत में मैं,
ऐसा कुछ रच डालूंगी।
मन को चेन मिलेगा मेरे,
बात अपनी कह पाऊँगी।

‘तालाबंदी’ में तो यारों,
भावनाएं भी कैद हुईं।
किसी-किसी के खिले चेहरे,
किसी को सजा-ए-मौत हुई।

फुर्सत के इन क्षणों में तो,
सब कुछ घर में बन्द हुआ।
घर में रहते रहते देखो,
अब चलना दुश्वार हुआ।

मैंने भी फुर्सत में,फुर्सत से पूछा,
कहो क्या हाल हैं तुम्हारे ?
कहने लगी वो हँस कर,
प्रिय,जो हाल हैं तुम्हारे।

काम करते-करते घर में,
कभी खुद से भी मिल लेती हूँ।
बहुत दिनों के बाद मिली तो,
सोचा,थोड़ा-सा लिख लेती हूँ।

ज्यादा फुर्सत में तो देखो,
रिश्ते भी बेस्वाद हो गए।
खुली हवा में साँस लिए तो,
लगता है कई साल हो गए॥

परिचय: सुलोचना परमार का साहित्यिक उपनाम ‘उत्तरांचली’ है,जिनका जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में श्रीनगर गढ़वाल में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं। उत्तराखंड राज्य के देहरादून की निवासी श्रीमती परमार की शिक्षा स्नातकोत्तर है। आपकी लेखन विधा कविता,गीत, कहानी और ग़ज़ल है। हिंदी से प्रेम रखने वाली `उत्तरांचली` गढ़वाली भाषा में भी सक्रिय लेखन करती हैं। आपकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मान,महिमा साहित्य रत्न-२०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान तथा विभिन्न श्रवण कैसेट्स में गीत संग्रहित होना है। आपकी रचनाएं कई पत्र-पत्रिकाओं में विविध विधा में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में आपके ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं। आपका कार्यक्षेत्र अब लेखन व सामाजिक सहभागिता हैl साथ ही सामाजिक गतिविधि में सेवी और साहित्यिक संस्थाओं के साथ जुड़कर कार्यरत हैं।

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