मेरी भी सुनो…

दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’ बूंदी (राजस्थान) ****************************************************************** बनी धाय थी,वही गाय हूँ, करते क्यों तुम तिरस्कार। किस दिन लौटे,फिर जीवन में, मेरे वो ही पूर्व बहार। बन उजाड़ मैं पिटती जाऊं, तुम्हें फरक कब पड़ता है। तन-मन पर जो घाव लगा है, पीड़ा दे,वो सड़ता है। हाय! मेरे गोपाल कहाँ हो, ढूंढू तुमको मैं … Read more