दुर्गेश कुमार मेघवाल ‘डी.कुमार ‘अजस्र’
बूंदी (राजस्थान)
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बनी धाय थी,वही गाय हूँ,
करते क्यों तुम तिरस्कार।
किस दिन लौटे,फिर जीवन में,
मेरे वो ही पूर्व बहार।
बन उजाड़ मैं पिटती जाऊं,
तुम्हें फरक कब पड़ता है।
तन-मन पर जो घाव लगा है,
पीड़ा दे,वो सड़ता है।
हाय! मेरे गोपाल कहाँ हो,
ढूंढू तुमको मैं बन-बन।
इससे तो मुझे मौत भली है,
नरक बन गया यह जीवन।
ओ भारत-जन मुझको मेरा,
खोया पद वो लौटाओ।
नहीं तो अब ना मइया कहना,
ना मेरे अब पूत कहाओ।
कभी तो मैं थी पूजी जाती,
द्वार-द्वार घर-मंदिर।
दर-दर भटक रही हूँ अब मैं,
घर के खड़ी हूँ बाहर।
वंश मेरा कपूत नहीं है ,
सोचो तुम इक बार।
असीम ऊर्जा से भरा हुआ,
वो रहता बेकरार।
जिसको तुमने भाई था माना,
मरता घर वो कसाई।
गौशाला अब बनी आसरा,
वहाँ भी है रुसवाई।
सत्य-अहिंसा-न्याय के पालक,
मेरा भी कुछ न्याय करो।
पीढ़ियां जिसने अमृत पोषी,
उससे ना अन्याय करो।
धर्म के रक्षक बने हुए हो ,
अधर्म ना मेरे साथ में हो।
मैं भी खुश हो ,जी लूं तुम संग,
मजा पुरानी बात में हो।
अर्थनीति में बन्ध कर तुम,
धर्म-अधर्म को भूल गए।
संस्कृति की पहचान को खोकर,
मात-पिता भी समूल गए।
वही कामधेनु हूँ,जिससे तुमने,
मन वांछित फल था पाया।
देव से तुम भी,कृतघ्न बने अब,
फर्ज तुम्हारा बिसराया।
तिल-तिल कर मैं मरती जीवन,
सहानुभूति तुम दिखलाओ।
वही धाय फिर बनूँ तुम्हारी,
सपूत बनो,मुझको अपनाओ॥
परिचय–आप लेखन क्षेत्र में डी.कुमार’अजस्र’ के नाम से पहचाने जाते हैं। दुर्गेश कुमार मेघवाल की जन्मतिथि-१७ मई १९७७ तथा जन्म स्थान-बूंदी (राजस्थान) है। आप राजस्थान के बूंदी शहर में इंद्रा कॉलोनी में बसे हुए हैं। हिन्दी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा लेने के बाद शिक्षा को कार्यक्षेत्र बना रखा है। सामाजिक क्षेत्र में आप शिक्षक के रुप में जागरूकता फैलाते हैं। लेखन विधा-काव्य और आलेख है,और इसके ज़रिए ही सामाजिक मीडिया पर सक्रिय हैं।आपके लेखन का उद्देश्य-नागरी लिपि की सेवा,मन की सन्तुष्टि,यश प्राप्ति और हो सके तो अर्थ प्राप्ति भी है। २०१८ में श्री मेघवाल की रचना का प्रकाशन साझा काव्य संग्रह में हुआ है। आपकी लेखनी को बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सेवा सम्मान-२०१७ सहित अन्य से सम्मानित किया गया है|