आत्मजा
विजयलक्ष्मी विभा इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश) ********************************************************* ‘आत्मजा’ खंडकाव्य से भाग-१२…….. दिन होते ही सेतु बनाती, जीवन में आगे जाने के रात सुखद सपनों में खोती, अंशुमान को अपनाने के। अलग-अलग थे दोनों ही पथ, दिन के और रात के अपने दिन में थे कुछ कार्य प्रायोगिक, और रात में ऊँचे सपने। कैसे जोड़े इन दोनों को, बहुत … Read more