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ताजमहल नहीं जागीर बादशाह की

नताशा गिरी  ‘शिखा’ 
मुंबई(महाराष्ट्र)
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गुरुर नहीं,मैं ताजमहल हूँ,
रक्त से सना संगमरमर का अकूहल हूँ
कितनों का प्रेम उजाड़ कर,
अन्दर से बना खंडहर
ऊपर से दिखता चहल हूँ,
प्रेम को घृणित कर दे
किया कर्म वो रूप पहल हूँl
गुरुर नहीं,मैं ताजमहल हूँ…

हाँ,याद है मुझे आज भी,
वह हजारों कटे हुए हाथ
रक्त से सना था मेरा ताज,
घमंड के प्रतिकाष्ठा के
दफन हुए हैं बहुत राज,
मरघट से प्रेम का
जीता-जागता साज हूँ,
मैं ताज हूँ,हाँ मैं ताजमहल हूँ।

हाँ,मैं प्रेम महल हूँ,
महज उन मजदूरों का
बेसुध होकर बस गढ़ा मुझे,
प्रीतम का काजल चुरा
रातभर बस पड़ा मुझे,
छिल गई थी उंगलियां
दिया रूप गुंबद का,
तब जाकर किया खड़ा मुझे।

हाँ,वही गुरुर मैं ताजमहल हूँ,
तिल भर की चूक नहीं मुझमें
ऐसे मुझे संवारते रहे,
प्रीतम को प्रिय देखें
ऐसे मुझे निहारते रहे,
मेरी नक्काशियों में वफाओं की
बारीकियां लिखते रहे,
भव्य रूप देने के लिए
अपनी दुनिया से दूरियां लिखते रहें।

अपने किस्सों को मेरे हिस्से देते रहे,
अपने दर्द से मेरी खुशियों पिरोते रहे
वर्ष-दो वर्ष की बात नहीं,
बात पूरी जवानी की है
जो मुझ पर लुटा दिए,
उनकी अनकही कहानी की हैl
ताजमहल नहीं जागीर बादशाह की,
मजदूरों के अधूरे प्रेम कहानी की हैll

परिचय-नताशा गिरी का साहित्यिक उपनाम ‘शिखा’ है। १५ अगस्त १९८६ को ज्ञानपुर भदोही(उत्तर प्रदेश)में जन्मीं नताशा गिरी का वर्तमान में नालासोपारा पश्चिम,पालघर(मुंबई)में स्थाई बसेरा है। हिन्दी-अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाली महाराष्ट्र राज्य वासी शिखा की शिक्षा-स्नातकोत्तर एवं कार्यक्षेत्र-चिकित्सा प्रतिनिधि है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत लोगों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य की भलाई के लिए निःशुल्क शिविर लगाती हैं। लेखन विधा-कविता है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-जनजागृति,आदर्श विचारों को बढ़ावा देना,अच्छाई अनुसरण करना और लोगों से करवाना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद और प्रेरणापुंज भी यही हैं। विशेषज्ञता-निर्भीकता और आत्म स्वाभिमानी होना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अखण्डता को एकता के सूत्र में पिरोने का यही सबसे सही प्रयास है। हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा घोषित किया जाए,और विविधता को समाप्त किया जाए।”

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