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बेटी बनकर जो जन्मी थी…

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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बेटी बनकर जो जन्मी थी,वो ही कल माँ बन जाएगी।
जीवन को जग में लाने के,दस्तूर वही तो निभाएगी।
बेटी बनकर जो जन्मी थी…

ओ जग वालों कुछ तो समझो कितने दु:ख सहती है नारी,
नव-जीवन को नौ माह उदर में अपने रखती है नारी।
ना कोई आस कभी वो करे,सन्तान के सारे दु:ख वो हरे।
अपना जीवन अर्पण करके हम सबको हर सुख वो देती॥
बेटी बनकर जो जन्मी थी…

चाहत का सिला पाने के लिए कितनों को दु:ख देते कितने,
पर सोच बने न कभी दिल में उस चाहत से हैं मिटे कितने।
हम भी तो सब कुछ सह लेते,ना जुल्म मिटाने को अड़ते,
मिलता उस जुल्म का दर्द जिसे,हम सबमें किसी की बेटी थी॥
बेटी बनकर जो जन्मी थी…

सम्मान मिले जो बेटी को,तो स्वर्ग हमारी जमीं पर हो,
पर मान मिटे हर बेटी का,उसकी इज्ज़त न कहीं पर हो।
किरदार बदलते वक्त के संग,पर लोग बदलते रंग और ढंग,
इक पल की खुशी खुद पाने को,खुशियों को मिटाते जीवन की॥
बेटी बनकर जो जन्मी थी…

कुछ ऐसे दरिन्दे होते हैं जो अपमानित बेटी को करें,
जब वो बेटी माँ बनती तब वो ही दरिन्दे पूजा करें।
दस्तूर हैं ऐसे दुनिया के,किरदार बदलते रहते हैं,
लेकिन दुनिया में खुशी के लिए कुछ जालिम कुछ ना तजते हैं॥

पर फिर भी ठान लो जग वालों बेटी का सब सम्मान करें,
हम सबकी माँ भी तो इक दिन बेटी ही बनकर आई थी॥
जो बेटी बनकर जन्मी थी…

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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