इंदौर (मप्र)।
नवरात्रि की नवमी और विजयादशमी के पावन संयोग पर माँ जगदंबा का स्तवन तथा बुराई पर अच्छाई की विजय का उद्घोष करती कविताओं से विशेष दिवस को अविस्मरणीय
बनाया गया। संस्था नई क़लम की मासिक ऑनलाईन काव्य गोष्ठी में आस्था के साथ जीवन के सभी रंगों को प्रस्तुत करती कविताएं पढ़ी गई।
गोष्ठी में पीरुलाल कुम्भकार ने पढ़ा-जो भी हो,उसका इक कारण होता है। खड़ा सामने रोज उदाहरण होता है। नितेश कुम्भकार ने कविता पढ़ी-मन में बैठा कपटी रावण,रावण का संहार करें तो श्रुति मुखिया ने नज़्म पढ़ी- मुझे याद है आज भी वो दिन तुम्हारी पलकों की जालीदार परतों से तुमने मुझे देखा था।
जितेन्द्र राज ने ग़ज़ल पढ़ी-इक कटोरी खीर जब इक चुटकी शकर हो गई। ऐसे ही रविराज टांक ने ग़ज़ल-तेरी गोद में सोऊं दुपट्टे से हवा कर देना,विनोद सोनगीर ने ग़ज़ल-मुहब्बत के तानेबाने में दिन-रात अपने,रिश्ते में आज तुरपाई न थी,डॉ. विमल कुमार ने कविता-पीढ़ियो से मानवों के सिर पे जो बोझ रखा,आखिर क्यों हम नहीं उसको उतारते सहित पूनम आदित्य ने कविता-अंग-अंग का ये रंग देख अनंग दंग हो गया,तेरे ही रूप और स्वरूप के समक्ष समुद्र क्षुब्द हो गया…से सबको रोमांचित किया।
संस्था उपाध्यक्ष विनोद सोनगीर ने बताया कि,मुख्य अतिथि कवियित्रीद्वय विनिता सिंह चौहान एवं डॉ. संगीता पाल रही। अध्यक्षता वरिष्ठ कवि राम शर्मा परिंदा ने की। संचालन रविराज टांक ने किया। आभार प्रदर्शन श्री सोनगीर ने किया।