वर्षा तिवारी
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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वर्षा की बूँदों से अभिषेक हुआ,
इंद्रधनुष ने आसमान को छुआ
पंछियों की चहचहाहट ने किया शोर-
एहसास हुआ,आ रही है जाड़े की भोर।
बूँदों के बाणों का खत्म हुआ पथ,
धरती पर आया कोमल किरणों का रथ
जंगल,पर्वत,खेतों ने पहनी कोहरे की चादर-
आ गई,देखो सफेद,शुभ्र जाड़े की भोर।
फूलों,पत्तों पर मुस्कुरा रही हैं,ओस की बूँद,
नन्हें-नन्हें बच्चों की ठंड में हो गई आँखें मूँद
भौंरे-तितलियाँ बढ़ने लगे बगीचे की ओर-
कहने लगे-आ गई है जाड़े की भोर।
कहीं दिवाली की है जगमग,
कहीं क्रिसमस के हैं अनोखे रंग।
हर कोई निकल रहा है सैर पर-
सुहानी बन रही है,जाड़े की भोर॥