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बेटी से ज़्यादा बहू

कुन्ना चौधरी ‘कुन्ना’
जयपुर(राजस्थान)
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माना बेटियाँ होती रब की सौग़ात,
उससे कर लेते हम मन की बात
पर बहू नहीं होती किसी बेटी से कम-
बेटी से ज़्यादा बहू के संग कटते दिन-रात…।

नन्हीं-सी बिटिया खिल कर फूल हुई,
फिर चल दी ब्याह कर पिया के साथ
बहू बन कर नया घर संसार है बसाना-
बेटी बन सास-ससुर का वो बंटाएगी हाथ…।

बेटियाँ तो चार दिन की होती मेहमान,
जैसे बगिया में कोमल कोपलों का वास
जीवन विस्तार पाने को भेजी जाती ससुराल-
फलदार वृक्ष बन सजाती बहुएँ हमारा निवास…।

शिक्षा-दीक्षा लालन-पालन पाती वो मायके में,
अधिकार की कूँची मिलती है बहू बनने के बाद
गहने,कपड़े और तोहफ़े ले विदा होती है बेटियाँ-
बेटे का उपहार तो मिलता किसी की बहू बनने के बाद…।

लाड़-प्यार देकर ज़िम्मेदारी से पाली जाती हैं बेटियाँ,
बहू को जो मिले स्नेह-दुलार एक बेटी के समान।
तो वो निभाती ता-उम्र अनेकानेक ज़िम्मेदारियाँ-
पूरी करती है परिवार की ख़ुशहाली के सब अरमान…॥

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