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त्योहार को होली के…

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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त्योहार को होली के दिल से ही मनाते थे,
त्योहार को लेकिन अब नियमों से मनाते हैं।
फागुन के महीने को रंगों से सजाते थे,
अब फाग बिना सबसे मिलते न मिलाते हैं।
त्योहार को होली के…

बाहर न निकल सकते मिलने की मनाही है,
त्योहार मनाएं क्या,कोविड की तबाही है।
‘कोरोना’ महामारी सबको ही डराती है,
जीवन न मिटे जग से सब ये ही मनाते हैं।
त्योहार को होली के…

भगवान बताओ ये दस्तूर बने कैसे,
तुम सबके हो रखवाले फिर क्यों ये बने ऐसे।
दिखते न किसी को तुम कोविड भी नहीं दिखता,
उल्टा ये मगर उसका जो तुमसे मनाते हैं।
त्योहार को होली के…

रखते हैं सभी मन में मूरत को तुम्हारी ही,
त्योहार में सजती है क्या भव्य सितारों-सी।
पर अब ये हुआ क्या जो हर हाल दिखाते हैं,
क्या रंग जमे जब हम चेहरों को छुपाते हैं।
त्योहार को होली के…॥

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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