श्रीमती देवंती देवी
धनबाद (झारखंड)
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सिन्दूर की कहानी बहुत है पुरानी,
देवलोक में निभाईं देवों की रानी।
अमीर-गरीब मान रखा सिंदूर का,
नित नियम से मांग भरी सिंदूर से।
वो सिन्दूर नारी को किया निहाल,
सिंदूर पाने को कुमारी है बेहाल।
गुण गाओ सखी सिंदूर है कमाल,
सिंदूर दे के साजन रहता है बेहाल।
सिंदूर जन्म-जन्म का है बन्धन,
नारी दिल से नहीं करती खन्डन।
हर नारी का सुहाग कहलाता है,
चेहरे की सुन्दरता को बढ़ाता है।
सिंदूर विवाह की,ही है पहचान,
वह क्या जानेगी जो है अनजान।
वो नारी जानेगी जिसका खो गया,
सिंदूर खोने से जीवन सूना हो गया।
सिंदूर पराए से रिश्ता जोड़ता है,
सिंदूर ही पवित्र प्रेम कहलाता है।
सिंदूर से ही श्रीसीता सती पार्वती,
अमर सुहागन सभी हैं कहलाती।
पति प्यार करे तो प्यार की लकीर,
वरना सिंदूर नारी का बना जंजीर।
सिंदूर देने वाले,दे के लाज रखना,
सिंदूर देकर भूल मत जाना॥
परिचय-श्रीमती देवंती देवी का ताल्लुक वर्तमान में स्थाई रुप से झारखण्ड से है,पर जन्म बिहार राज्य में हुआ है। २ अक्टूबर को संसार में आई धनबाद वासी श्रीमती देवंती देवी को हिन्दी-भोजपुरी भाषा का ज्ञान है। मैट्रिक तक शिक्षित होकर सामाजिक कार्यों में सतत सक्रिय हैं। आपने अनेक गाँवों में जाकर महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है। दहेज प्रथा रोकने के लिए उसके विरोध में जनसंपर्क करते हुए बहुत जगह प्रौढ़ शिक्षा दी। अनेक महिलाओं को शिक्षित कर चुकी देवंती देवी को कविता,दोहा लिखना अति प्रिय है,तो गीत गाना भी अति प्रिय है।