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मानवीय संवेदनाओं पर भारी स्वार्थ

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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आज समाज,शहर,नगर,प्रदेश,देश या यूँ कहें सम्पूर्ण मानव जगत ‘कोरोना’ महामारी की विकराल मौत के तांडव में फँसा त्राहि माम्-त्राहि माम् शिव कर रहा है। श्वांसों की डोर प्राणवायु (ऑक्सीजन) के मकड़जाल में फँसी कराह रही है। एक ओर प्राणवायु की किल्लत तो दूसरी ओर संवेदनाविहीन शैतानी प्राणवायु चोरी,सौदेबाजी, जमाखो़री,गबन का अमानवीय दानवी खेल हो रहा है। मानवीय मूल्य और इन्सानियत सब तार-तार शर्मसार सिसक रही है। जीवन आशकिरण टीका, किट्स,प्राणवायु की खुलेआम राजनीतिक लूट का घिनौना ताण्डव हो रहा है।
श्मशानों में कंधे विरत लावारिश लाशों के ढेर, अंतिम संस्कार हेतु लकड़ियों का अमानवीय दोहन..वस्तुतः बड़ी भयावह स्थिति इस समय है। चिकित्सक,नर्स,उपचारक,सेवक,स्वयंसेवी संस्थाएँ एवं सरकार दिन-रात कोरोना से जिंदगी की लड़ाई लड़ रहे हैं। लाखों को अपना ग्रास बना चुका यह कोरोना दानव अब भी विविध रूप को धारण कर मौत का तांडव कर रहा है और स्वार्थी भौतिक सुख लोलुप मानवता नैतिकता और संवेदनाविरत मौत के सौदागर जीवन की साँसों के साथ घिनौना खेल खेल रहे हैं। लानत है इन्सानियत के ऐसे दुश्मनों को।
गत वर्ष कोरोना का प्रथम दौर था। भारत में कोरोना पैर पसार रहा था। तालाबंदी से सारा भारत आबद्ध कोरोना को दूर भगाने की कोशिश कर रहा था। उस समय कोरोना की कोई दवा या टीका, वेंटिलेटर,सिलेंडर भरी प्राणवायु की सुविधा,बिस्तर आदि कुछ भी छोटे शहरों में उपलब्ध नहीं थे। टीके तो बने ही नहीं थे। दो-तीन महीनों तक निरन्तर जन जीवन संरक्षण सेवा में लगे अनेक चिकित्सक स्वयं कोरोना ग्रसित हो गए।
ख़ुद चिकित्सक रहते हुए भी हजारों की वर्षों से जान बचानेवाले आज स्वयं पॉजिटिव ग्रसित हो जीवन-मरण की जद्दोजहद्द में फँसे थे। ऐसे कई समर्पित जनसेवक राष्ट्रभक्त चिकित्सक जीवनदायिनी प्राणवायु के बिना तड़पकर चिरनिद्रा में सो गए।
आज कोरोना की दूसरी लहर में भी श्वाँसों की डोर जीवनदायिनी प्राणवायु की कमी,मौत के खलनायक सौदागरों द्वारा उसकी ज़माखोरी और प्रतिदिन प्राणवायु के बिना जीवन गँवाते मानव लाशों की ढेर भी लोगों,प्रशासकों और ज़माख़ोरों की रूहें नहीं कँपाती। दुर्भाग्य है देश और मानवता का।

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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