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माँ सदा साथ परछाई की तरह

अनूप कुमार श्रीवास्तव
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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माँ तो बस पूजा वंदगी की तरह।
साथ है माँ खड़ी जिंदगी की तरह।

मोल भी अनमोल जो ममता पायीं,
माँ सदा साथ में परछाई की तरह।

माँ का समर्पण किससे हो आंकना,
रात-दिन जागी है पालने की तरह।

माँ सबक दे गई मुझको बचपने से,
यादों में आई है रूलाई की तरह।

माँ मेरी है आराधना प्रभु की,
है कहीं मन में बसी भक्ति की तरह।

माँ मुकद्दर माँ मुकद्दस तस्वीर है,
माँ की दुआएं हो रौशनी की तरह।

रूठना देखा नहीं वो माँ मेरी थी,
है लबों पे कुछ निशानी उसी तरह।

गूंजती है आज भी कानों में सदा,
छूकर निकली है हवाओं की तरह।

बात का लहजा अलग सलीका अलग,
आदतें मुझमें है सब माँ की तरह।

क्या मिला उनके बकस से जान लो,
पैदायशी लिबास आँचल की तरह॥

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