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खुशी का पैमाना

डॉ.पूर्णिमा मंडलोई
इंदौर(मध्यप्रदेश)

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शहर में ‘तालाबंदी’ हुई तो काम वाली बाईयों का आना भी बंद हो गया। फिर भी उनको उस समय के पैसे तो देने ही थे,इसलिए छाया अपने २ महीने के काम के पैसे लेने आई तो मैंने पूछा,-‘क्या हाल है छाया ?
‘अच्छे हैं दीदी।’
मैंने फिर पूछा,-‘कैसा चल रहा है ?’
‘”सब अच्छा चल रहा है”,इतना बोलकर वह मुस्कुरा दी। अब तो मुझे और अधिक उत्सुकता होने लगी। जहां एक तरफ तालाबंदी से लोग परेशान हैं,वहां इसको कोई परेशानी नहीं है! मैंने एक बार फिर पूछा!-‘क्या अच्छा चल रहा है ?’
वो बोली,-“दीदी खाने को मिल रहा है,घर में बैठे हैं,काम पर जाना नहीं है,खाना बनाते हैं, खाते हैं,सब अच्छा चल रहा है। मकान मालिक को किराया अभी देना नहीं है। लोन लिया है तो जब काम पर जाएंगे,पैसे मिलेंगे तब देंगे। यही सब अच्छा है।” इतना बोल कर वो फिर हँस दी। मैंने उसे २ महीने के पैसे दिए तो खुशी-खुशी चली गई। छाया के जाने के बाद मैं सोचती रही कि,इतने कठिन समय में जब वो खुश रह सकती है तो हम क्यों नहीं ? सिर्फ आवश्यकता यह है कि,हमें अपने खुशी के पैमाने बदलने होंगे।

परिचय–डॉ.पूर्णिमा मण्डलोई का जन्म १० जून १९६७ को हुआ है। आपने एम.एस.सी.(प्राणी शास्त्र),एम.ए.(हिन्दी) व एम.एड. के बाद पी-एच. डी. की उपाधि(शिक्षा) प्राप्त की है। डॉ. मण्डलोई मध्यप्रदेश के इंदौर स्थित सुखलिया में निवासरत हैं। आपने १९९२ से शिक्षा विभाग में सतत अध्यापन कार्य करते हुए विद्यार्थियों को पाठय सहगामी गतिविधियों में मार्गदर्शन देकर राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर सफलता दिलाई है। विज्ञान विषय पर अनेक कार्यशाला-स्पर्धाओं में सहभागिता करके पुरस्कार प्राप्त किए हैं। २०१० में राज्य विज्ञान शिक्षा संस्थान (जबलपुर) एवं मध्यप्रदेश विज्ञान परिषद(भोपाल) द्वारा विज्ञान नवाचार पुरस्कार एवं २५ हजार की राशि से आपको सम्मानित किया गया हैl वर्तमान में आप सरकारी विद्यालय में व्याख्याता के रुप में सेवारत हैंl कई वर्ष से लेखन कार्य के चलते विद्यालय सहित अन्य तथा शोध संबधी पत्र-पत्रिकाओं में लेख एवं कविता प्रकाशन जारी है। लेखनी का उद्देश्य लेखन कार्य से समाज में जन-जन तक अपनी बात को पहुंचाकर परिवर्तन लाना है।

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