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भगवा रंग बोलेगा…

डॉ.विद्यासागर कापड़ी ‘सागर’
पिथौरागढ़(उत्तराखण्ड)
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रचनाशिल्प:मात्रा भार १६-१५

भारती के लाल कैसे थे,
ये भगवा रंग बोलेगा।
दुश्मनों के काल कैसे थे,
ये भगवा रंग बोलेगा॥

चढ़ाये शीश हँस-हँसकर,
निडर हो माँ के चरणों में।
वो माँ के ढाल कैसे थे,
ये भगवा रंग बोलेगा॥
भारती के लाल कैसे थे…

जो केहरि बनके तोड़े थे,
गुलामी की जंजीरों को।
वो समर के साल कैसे थे,
ये भगवा रंग बोलेगा॥
भारती के लाल कैसे थे…

ये समझकर मीत हैं अपने,
पिलाया दूध सदा हमने।
वो कुटिल थे,व्याल कैसे थे,
ये भगवा रंग बोलेगा॥
भारती के लाल कैसे थे…

वो कफन को हाथ अपने से,
था बाँधा भाल पर जिसने।
वो चमकते भाल कैसे थे,
ये भगवा रंग बोलेगा॥
भारती के लाल कैसे थे…

लड़े हैं पाँच शतकों तक,
ये अपनी आन की खातिर।
वो लगाये जाल कैसे थे,
ये भगवा रंग बोलेगा॥
भारती के लाल कैसे थे…

गोपियाँ भी नेह करतीं थीं ,
अकारण अपने मोहन से।
ग्वाले और बाल कैसे थे,
ये भगवा रंग बोलेगा॥
भारती के लाल कैसे थे…

थे चले दानव दलन करने,
जो गुरु के साथ कानन में।
अरे दशरथ लाल कैसे थे,
ये भगवा रंग बोलेगा॥
भारती के लाल कैसे थे…

जो शिवाजी की पताका थी,
थी शंकर की मधुर झोली।
वो विवेकानंद कैसे थे,
ये भगवा रंग बोलेगा॥

भारती के लाल कैसे थे,
ये भगवा रंग बोलेगा।
दुश्मनों के काल कैसे थे,
ये भगवा रंग बोलेगा॥
भारती के लाल कैसे थे…

परिचय-डॉ.विद्यासागर कापड़ी का सहित्यिक उपमान-सागर है। जन्म तारीख २४ अप्रैल १९६६ और जन्म स्थान-ग्राम सतगढ़ है। वर्तमान और स्थाई पता-जिला पिथौरागढ़ है। हिन्दी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान रखने वाले उत्तराखण्ड राज्य के वासी डॉ.कापड़ी की शिक्षा-स्नातक(पशु चिकित्सा विज्ञान)और कार्य क्षेत्र-पिथौरागढ़ (मुख्य पशु चिकित्साधिकारी)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत पर्वतीय क्षेत्र से पलायन करते युवाओं को पशुपालन से जोड़ना और उत्तरांचल का उत्थान करना,पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के समाधान तलाशना तथा वृक्षारोपण की ओर जागरूक करना है। आपकी लेखन विधा-गीत,दोहे है। काव्य संग्रह ‘शिलादूत‘ का विमोचन हो चुका है। सागर की लेखनी का उद्देश्य-मन के भाव से स्वयं लेखनी को स्फूर्त कर शब्द उकेरना है। आपके पसंदीदा हिन्दी लेखक-सुमित्रानन्दन पंत एवं महादेवी वर्मा तो प्रेरणा पुंज-जन्मदाता माँ श्रीमती भागीरथी देवी हैं। आपकी विशेषज्ञता-गीत एवं दोहा लेखन है।

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