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हो विजया मानव जगत्

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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सकल मनोरथ पूर्ण हो,सिद्धदातृ मन पूज।
सुख वैभव मुस्कान मुख,खुशियाँ न हो दूजll

सिद्धिदातृ जगदम्बिके,माँ हैं करुणागार।
मिटे समागत आपदा,जीवन हो उद्धारll

सिंह वाहिनी खड्गिनी,महिमा अपरम्पार।
माँ दुर्गा नवरूप में,शक्ति प्रीति अवतारll

खल मद दानव घातिनी,करे भक्त कल्याण।
कर धर्म शान्ति स्थापना,सब पापों से त्राणll

श्रद्धा मन पूजन करे,माँ गौरी अविराम।
रिद्धि-सिद्धि अभिलाष जो,पूरा हो सत्कामll

विजय मिले सद्मार्ग में,करे मनसि माँ भक्ति।
लक्ष्मी वाणी साथ में,माँ दुर्गा दे शक्तिll

जन सेवा परमार्थ मन,भक्ति प्रेम हो देश।
सिद्धिदातृ अरुणिम कृपा,प्रीति अमन संदेशll

हो विजया मानव जगत,समरस नैतिक मूल्य।
मानवीय संवेदना,जीवन कीर्ति अतुल्यll

कलुषित मन रावण जले,हो नारी सम्मान।
धर्म त्याग आचार जग,वसुधा बन्धु समानll

बरसे लक्ष्मी की कृपा,सरस्वती वरदान।
माँ काली नवशक्ति दे,देशभक्ति सम्मानll

पुष्पित हो फिर से निकुंज,प्रकृति मातु आनन्द।
चहुँदिशि हो युवजन प्रगति,सुरभित मन मकरन्दll

विजयादशमी सिद्धि दे,मिटे त्रिविध संताप।
हर दुर्गा कात्यायनी,कोरोना अभिशापll

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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