डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली)
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डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिकी संसद पर जो नौटंकी रचाई थी,उसका अंत तो हो चुका है और उन्होंने यह भी मान लिया है कि २० जनवरी को डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता जो. बाइडन और कमलादेवी हैरिस राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति की शपथ ले सकेंगे। दूसरे शब्दों में डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति की कुर्सी खाली कर देंगे। अब दूसरा सवाल यह है कि वे राष्ट्रपति भवन (व्हाइट हाउस) भी खाली करेंगे या नहीं ? पिछले माह ऐसा माना जा रहा था कि वे व्हाइट हाउस में डटे रहेंगे और उन्हें वहां से निकालने के लिए फौज को बुलाना पड़ेगा,लेकिन अब परसों की नौटंकी में वे इतनी बुरी तरह से पिट चुके हैं कि अपने-आप भाग खड़े होंगे। पहली बात तो यह कि अमेरिकी कांग्रेस (संसद) के दोनों सदनों ने अपनी संयुक्त बैठक में बाइडन-हैरिस की जोड़ी पर मोहर लगा दी है। यह संवैधानिक दस्तक है कि ट्रम्प जी आप सिंहासन खाली करो। दूसरा,ट्रम्प की अपनी पार्टी के सांसदों ने ट्रम्प के विरोध में भाषण और मत दिए हैं। तीसरा,ट्रम्प और उनके समर्थकों ने कई उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में याचिकाएं लगा रखी हैं लेकिन उनका सबका अंजाम अधर में ही लटका हुआ है। चौथा,ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी को सीनेट के चुनाव में जाॅर्जिया प्रांत ने उल्टा लटका दिया है। दोनों सीट डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जीत गए हैं। उनमें से एक अश्वेत है। पांचवाँ,सारी दुनिया में ट्रम्प की इस नौटंकी पर थू-थू हो रही है। ट्रम्प के नरेंद्र मोदी जैसे घनिष्ट मित्रों ने संसद भवन पर हमले की निंदा की है। ऐसे में अब ट्रम्प २० जनवरी के बाद भी अपने पद पर टिके रहने का दुस्साहस नहीं करेंगे,लेकिन कुछ सीनेटरों ने मांग की है कि ट्रम्प को के पहले ही बर्खास्त किया जाए। यह अमेरिकी संविधान के २५ वे संशोधन के तहत संभव है। उसके चौथे अनुच्छेद के मुताबिक उप-राष्ट्रपति और आधे से ज्यादा मंत्री ऐसा प्रस्ताव पारित करें,तभी ट्रम्प को हटाया जा सकता है।
कुछ लोगों को डर यह है कि परमाणु हथियारों का खटका राष्ट्रपति के हाथ में ही होता है। पता नहीं वे उसे कब और क्यों दबा डालें ? ट्रम्प चाहे जैसे भी चालू आदमी हों,वे इतनी बड़ी मूर्खता नहीं करेंगे। उन्हें शांतिपूर्वक विदा होने दें। आशिक का जनाज़ा है,जरा धूम से निकले।
परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।