कुल पृष्ठ दर्शन : 142

ट्रम्प यात्रा:अमेरिकी मीडिया में समोसे और व्यापारिक सौदा न होने की सुर्खियां

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

*****************************************************************

अ‍मेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की सपरिवार भारत की ३६ घंटे की यात्रा की (भारत के लिहाज से)ठोस परिणति ३ अरब डॉलर के रक्षा सौदों तथा गैस व तेल के समझौतों के रूप में हुई,लेकिन अमेरिका में इसे खास महत्व नहीं मिला,गोया यह तो होना ही था। भारत की दृष्टि से सबसे बड़ी बात ट्रम्प द्वारा `सीएए` लागू करने और कश्मीर में धारा ३७० हटाने के मुद्दे पर नरेन्द्र मोदी सरकार का बचाव था। माना जा सकता है कि ट्रम्प की खातिरदारी पर जो १०० करोड़ खर्च किए गए,उसका पुरस्कार भारत को अमेरिकी सरकार के समर्थन के रूप में मिला। ट्रम्प ने साफ कहा कि,यह ‘भारत का अंदरूनी मामला है।` उन्होंने ऐलानिया तौर पर यह भी कहा कि,मोदी सभी धर्मों की स्वतंत्रता के हामी हैं। ट्रम्प के इस बयान को भारत की कूटनीतिक जीत माना जा रहा है,वहीं यह बयान सीएए को संविधान विरोधी बताने वालों के लिए झटका भी है। यकीनन ट्रम्प की यह यात्रा फिलहाल मोदी सरकार के स्टैण्ड को मजबूती ही देगी। अपनी पत्रकारवार्ता में ट्रम्प ने पूरी सावधानी बरती कि उनके श्रीमुख से ऐसा कुछ न निकले,जो मोदी सरकार को मुश्किल में डाल दे। हालांकि,यह गारंटी कोई नहीं दे सकता कि विवादास्पद मुद्दों पर ट्रम्प का रूख स्वदेश लौटने पर भी वही रहेगा,जो उन्होंने भारत में जताया।

ट्रम्प जैसे भी हों,लेकिन वो दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका के राष्ट्रपति हैं। इसलिए भारतीय मीडिया में उनकी यात्रा को भरपूर स्थान मिलना ही था और मिला भी। अगर दिल्ली की हिंसा न होती,तो शायद दो दिन तक टीवी चैनलों का एकसूत्री मीनू यही होता। भारत में ‘अतिथि देवो भव’ की तर्ज पर ट्रम्प परिवार का भरपूर सत्कार हुआ। मौज-मस्ती भी हुई। ट्रम्प के संदर्भ में तो इसे ‘अति‍थि महा देवो भव’ भी कहा जा सकता है,लेकिन ट्रम्प जिस असल मकसद से भारत आए थे,वह आंशिक रूप से ही पूरा हुआ। जो पूरा हुआ,वह है मोदी के बहाने अमेरिका के भारतवंशी मतदाताओं को रिझाना। जो अपूरा रहा,वह है भारत के साथ व्यापार समझौताl अमेरिका चाहता था कि भारत टैरिफ में रियायत दे और अमेरिकी उत्पादों के लिए नए कृषि क्षेत्र खोले। इस मुद्दे पर अगर समझौता नहीं हो सका तो इसका अर्थ यही है कि मोदी सरकार ने भारत के हितों से समझौता नहीं किया। वास्तव में ऐसा है तो यह संतोष की बात है।

जहां भारतीय मीडिया में २ दिन तक ट्रम्प की यात्रा पहली सुर्खी रही,वहीं यह देखना उतना ही दिलचस्प है कि खुद अमेरिका में ट्रम्प की भारत यात्रा को कितना स्थान मिला। अमेरिकियों की नजर में ट्रम्प की भारत यात्रा का क्या महत्व रहा ? इस लिहाज से अमेरिकी मीडिया पर एक नजर डालें। ‘यूएसए टुडे’ (संयुक्त राज्य अमेरिका का सर्वाधिक प्रसार वाला अखबार)के वेब संस्करण पर निगाह डालें तो अखबार के लिए अमेरिका की भारत से रक्षा सौदों से ज्यादा महत्वपूर्ण हालीवुड के मूवी मुगल हार्वे वीन्स्टीन के बारे में ट्रम्प द्वारा दिल्ली में किया गया राजनीतिक कटाक्ष था कि,-‘मैं उनका(वीन्स्टीन)प्रशंसक कभी नहीं रहा। मिशेल ओबामा और हिलेरी क्लिंटन जरूर उन्हें ‘चाहती’ थीं। ट्रम्प ने इसी बहाने अपने राजनीतिक विरोधियों को धोया। हार्वे वीन्स्टीन वो शख्सियत हैं,जिन पर ८७ अमेरिकी महिला सिने हस्तियों ने क्रूर यौन शोषण के आरोप लगाए,जिनमें से कोर्ट ने २ सही पाए और वीन्स्टीन को अदालत ने २५ साल जेल की सजा सुनाई। अखबार ने बाकी बातों को ज्यादा महत्व नहीं दिया।

अमेरिका के ज्यादातर अखबारों के वेब संस्करणों में मंगलवार की मुख्य खबर `कोरोना` वायरस ही थी। ट्रम्प की भारत यात्रा को बहुत नीचे जगह मिली है। मसलन ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने जरूर ट्रम्प की मोदी से मुलाकात को महत्व दिया। दूसरी मुख्य खबर के रूप में खबर का शीर्षक था-`धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे पर ट्रम्प द्वारा मोदी का बचाव।` अलबत्ता ‘द वाशिंगटन टाइम्स’ ने ट्रम्प द्वारा भारतीय उ्दयोगपतियों को `कोरोना` के खतरों और अमेरिका द्वारा उससे निपटने के लिए उठाए जा रहे कदमों की जानकारी देने को सुर्खी बनाया है। एक और प्रमुख अखबार ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ ने ‘ट्रम्प मोदी की दोस्ती को ‘ब्रोमांस’ करार देते हुए सवाल किया कि,इस दोस्ती के पीछे क्या है ?

ज्यादातर अमेरिकी अखबारों ने `कोरोना` के अलावा मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के निधन को प्रमुखता दी है। ‘लास एजेंल्स टाइम्स’ की तो यह प्रमुख खबर ही थी। मोटे तौर पर सभी अखबारों ने ट्रम्प की यात्रा के बावजूद भारत से बड़ा व्यापारिक सौदा न हो पाने पर निराशा जाहिर की है।

ट्रम्प परिवार की भारत यात्रा के पहले दिन यानी सोमवार का अमेरिकी अखबारों में स्थान और दिलचस्प था। मसलन ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने अपने स्थान में सबसे ज्यादा अहमियत राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में परोसे गए ब्रोकली समोसे को दी। अखबार ने लिखा-`ट्रम्प की भारत यात्रा के लिए बनाया गया ब्रोकली समोसा किसी को पसंद नहीं आया और ट्रम्प ने भी हाथ नहीं लगाया।` बता दें ‍कि आलू-मटर की जगह ब्रोकली-कार्न भरावन वाला यह समोसा खास ट्रम्प जी के लिए तैयार किया गया था। अमेरिकी न्यूज संस्थान `न्यूजवीक` ने पहले ही बता दिया था कि ट्रम्प के सीएए विरोध पर मोदी से बात करने की संभावना बहुत कम है। अखबार ने अमेरिकी ‍अधिकारियों के हवाले से कहा कि अगर इस मुद्दे पर बात हुई तो इससे गलत संदेश जाएगा। एक अन्य अखबार `वाशिंगटन एग्जामिनर` की सलाह थी कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अधिनायकवादी आंतरिक नीतियों और विवादित क्षेत्र कश्मीर पर उनकी सरकार की नीति को देखते हुए अमरीका की नीति भारत को हथियार बेचने की जगह उत्पादक व्यापारिक कूटनीति की होनी चाहिए। एक बड़े मीडिया प्रतिष्ठान एमएसएनबीसी ने कहा कि,अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति अपने दिखावे और उत्सव में यक़ीन रखते हैं और विदेशी अधिकारियों ने उनकी इस आत्ममुग्धता को सहलाना सीख लिया है। रिपब्लिकन पार्टी से ताल्लुक रखने वाले ट्रम्प को नीति,संस्कृति और इतिहास में कोई दिलचस्पी नहीं है। न्यूयार्क के मीडिया संस्थान `क्वार्ट्ज` ने ट्रम्प की भारत यात्रा के संदर्भ में अपनी खबर में अहमदाबाद में झुग्गियों के सामने बनाई गई दीवार को तरजीह दी। अखबार ने सरणियावास झुग्गी बस्ती की एक महिला के हवाले से कहा कि-`यह अंग्रेजों की गुलामी है।` अमेरिकी पत्रिका `द अटलांटिक` ने तो साफ लिखा कि-ट्रम्प जो आज करना चाहते हैं,वह मोदी पहले ही कर चुके हैं। ट्रम्प मुस्लिमों को बैन करना चाहते हैं,मोदी यह पहले ही कर चुके हैं।

राष्ट्रपति ट्रम्प के अमेरिकी मीडिया से ‘मधुर’ तो क्या ठीक-ठाक रिश्ते भी नहीं हैं। उनका साफ मानना है कि मीडिया केवल फर्जी समाचार देता है,लेकिन ‘गोदी मीडिया’ जैसा शब्द भारत के अलावा शायद ही किसी लोकतांत्रिक देश में चलता हो। अमेरिकी मीडिया की अपनी ठसक,टेक और प्रतिबद्धता है। वो ट्रम्प को केवल इसलिए भर तवज्जो नहीं देता कि वो देश के राष्ट्रपति हैं। वो काने को काना कहने से नहीं चूकता।

Leave a Reply