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झूठ हँस रहा आज

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)

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सच्चाई रोने लगी,झूठ हँस रहा आज।
दर्पण में वह अक्स है,जैसा दिखे समाजll

कानूनों को रोंदकर,आगे बढ़ता काल।
शांति नहीं,हैं आजकल,रोज़ नये जंजालll

बहकावे अस्तित्व में,सच विलुप्त है आज।
निर्लज्जी इंसान को,किंचित भी ना लाजll

बाहर सब कुछ स्वच्छ है,भीतर व्यापक मैल।
कर मक्कारी भाग लो,पकड़ो पतली गैलll

शंका का वातावरण,है कपटी परिवेश।
संस्कार के देश में,नीतिहीन आवेशll

गौरव सारा खो गया,भटक रहा ईमान।
अवसरवादी पा रहा,खुलकर अब सम्मानll

नेह नहीं,अपनत्व ना,खोया सब सद्भाव।
भावों का तो आजकल,होने लगा अभावll

जीवित मुर्दे लग रहे,भय का है अधिकार।
बस्ती में लेने लगा,अब विनाश आकारll

इंसां इंसां से लड़े,तोड़ सकल सम्बंध।
जज़बातों के टूटते,अब तो सारे बंधll

‘शरद’ टूटती आज तो,अंतर्मन की आस।
नहीं परस्पर दोस्तों,पलता अब विश्वासll

परिचय-प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैl आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैl एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंl करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंl गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंl साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंl  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।

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