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संवेदनहीन मानव

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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सुन्न-सा हो गया है
आज मानव,
सम्वेदनाओं को
मार गया है लकवा।
मृतप्रायः सी
हो गयी है भावनाएं,
न आभास है
फूलों की महक का,
न ही महसूस
कर पा रहा है
काँटों की चुभन।
न गर्माहट देती है
सूरज की गर्मी,
न ही शीतलता
दे पा रही है
चाँद की ठंडक।
कटता जा रहा है
आज मानव
प्रकति से,
अपनी सँस्कृति से।
मशीनी युग में
आज मानव भी,
बन कर रह गया है
एक जड़ मशीन।
प्रेम का डाल कर तेल
करना होगा सक्रिय,
फिर से एक बार
इन निष्क्रिय होती
मानव जड़ मशीनों को।
पुनः जीवंत
करना होगा,
मानव से बिछड़ी
उसकी मानवता को,
तभी मानव जीवन,
सफ़ल होगा,सार्थक होगा॥

परिचय-श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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