डॉ.नीलिमा मिश्रा ‘नीलम’
इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश)
तुम शरीर से खेलो मेरे
और जला कर राख करो,
तार-तार दामन तुम कर दो
मुझ पर रोज बलात करो।
किसने तुम्हें दिया हक़ इसका,
ये कैसी आज़ादी है ?
भारत की ललनाएँ कहतीं,
बंद सभी उत्पात करो॥
ख़ूब पढ़े सब ख़ूब बढ़े सब
नारा ये लगवाते हो,
पंख काट देते हो मेरे
तुम कितना तड़पाते हो।
अभी-अभी तो कली खिली थी
मसल दिया उसको तुमने,
अपनी इन वहशी हरकत पर
शर्म करो कुछ लाज करो॥
युगों-युगों से नारी ने ही
दर्द सहा ज़िल्लत झेली,
जन्म दिया जिसने मानव को
उसने ही इज़्ज़त ले ली।
अपने दुष्कर्मों का प्रायश्चित
तुम कर लो इस जीवन में,
माँ की इज़्ज़त करना सीखो तुम
बिटिया का सम्मान करो॥
वर्ना ये मत भूलो हे! नर
हम दुर्गा हम चंडी भी,
महिषासुर का मर्दन करने
वाली हम रणचंडी भी।
काली बनकर रण में कूदेंगे
नरमुंडों को काटेंगे ,
पापाचारों को तुम छोड़ो
परिचय–डॉ.नीलिमा मिश्रा का साहित्यिक नाम नीलम है। जन्म तारीख १७ अगस्त १९६२ एवं जन्म स्थान-इलाहाबाद है। वर्तमान में इलाहाबाद स्थित साउथ मलाका (उत्तर प्रदेश) बसी हुई हैं। स्थाई पता भी यही है। आप एम.ए. और पी-एच.डी. शिक्षित होकर केन्द्रीय विद्यालय (इलाहाबाद) में नौकरी में हैं। सामाजिक गतिविधि के निमित्त साहित्य मंचन की उपाध्यक्ष रहीं हैं। साथ ही अन्य संस्थाओं में सचिव और सदस्य भी हैं। इनकी लेखन विधा-सूफ़ियाना कलाम सहित ग़ज़ल,गीत कविता,लेख एवं हाइकु इत्यादि है। एपिग्रेफिकल सोसायटी आफ इंडिया सहित कई पत्र-पत्रिका में विशेष साक्षात्कार तथा इनकी रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। ब्लॉग पर भी लिखने वाली डॉ. मिश्रा की विशेष उपलब्धि-विश्व संस्कृत सम्मेलन (२०१५,बैंकाक-थाईलैंड)और कुम्भ मेले (प्रयाग) में आयोजित विश्व सम्मेलन में सहभागिता है। लेखनी का उद्देश्य-आत्म संतुष्टि और समाज में बदलाव लाना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-डॉ. कलीम कैसर हैं। इनकी विशेषज्ञता-ग़ज़ल लेखन में है,तो रुचि-गायन में रखती हैं।