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सत्यार्थ का प्रकाश गांधी

एन.एल.एम. त्रिपाठी ‘पीताम्बर’ 
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)

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अंह नहीं,हिंसा नहीं,
साहस,शक्ति,शौर्य
पुरूषार्थ पराक्रम की,
भाषा और परिभाषा है।
झुकना नहीं,टूटना नहीं,
अन्तरमन की मजबूती से
निकली निखरी,
उत्कर्ष उर्जा से
उपजी विजय मार्ग
की आभा और अस्तित्व।
कायर,कायरता नहीं,
अस्त्र-शस्त्र सौम्यता
क्षमाशीलता,दया,प्रेम,परमार्थ,
द्वेष-दंभ को तोड़ता
त्याग,तपस्या,बलिदान।
खड़ा अगर हो सामने,
काल लिए समग्र हथियार
बिफर-बिखर जाता है,
वह भी
सारी शक्ति हो जाती,
उसकी बेकार।
हिंसा में अस्तित्व,
सिर्फ मानव-मानवता की चीत्कार,
व्यथित-शिथिल
मानवता का संसार।
पीछे हटना पीठ दिखाना,
नहीं सीखता नहीं बताता
गांधी अहिंसा का सिद्धान्त।
अहिंसा अर्न्तमन का साहस,
एक ज्वाला है
चल पड़ता सिद्धान्त पथ पर,
पथिक वह निराला है।
राहों में सिर्फ  है मिलती,
पीड़ा,घावों का उपहार
अस्त्र-शस्त्र यही बन जाते,
इन्हीं अस्त्रों के धारों से
शत्रु जाता हार।
मिट जाना या मिटा देना,
की भाव-भावना
को अहिंसा करती है प्रतिकार।
हिंसा और अहिंसा में,
फर्क सिर्फ इतना
कारक-कारण,
को कर समाप्त
हिंसा का विजय मार्ग।
कारण का करे अंत,
परिमारजित करता कारक को
फैलाये जो नया उजाले का परिवेश,
अडिग धैर्य धर
आगे ही बढ़ते रहना,
जिसकी शान।
चट्टानें पिघल जाती,
बदल देते रास्ते सैलाब-तूफान 
शैतान संत-सा हो जाता,
सिंह श्वान,भुजंग,गाय
सब बैठते एकात्म
भाव से सबका हित,
सबका कल्याण।
र्निभीक-निडर,
निष्कंटक निश्चय
र्निधारित विजय पथ,
की आभा अस्तित्व
आस्था-विश्वास,
कर्म-धर्म धैर्य धरोहर।
दीन-हीन का त्याग तिरस्कार,
अविचलित लक्ष्य साध्य
साधना अस्त्र-शस्त्र नहीं,
राग-द्वेष नहीं
हौंसला-हिम्मत,शौर्य सिद्धान्त।
`गांधी` से बना `महात्मा` का जीवन,
व्रत अपरिहार्य
डर नहीं,दंभ नहीं,
आत्म-आत्मीय बोध
भय नहीं-भयाक्रान्त नहीं,
नहीं अपराध बोध।
शीतल मृदु व्यवहारिकता,
ज्वाला उर्जा की सार्थक सार्थकता
कायर नहीं,कुटिल नहीं,कुपित नहीं,
उद्देश्य मानव-मानवता
के कल्याण की सार भौमिकता।
आचार-व्यवहार,आचरण,
नियमित निष्ठा नीति-नियति में
राष्ट्र युग अवधारणा,
का निर्माण।
कटु-कटुता नहीं,
शत्रु-शत्रुता नहीं
प्रेम सन्देश में,
ही मानव समाज
की व्याख्या व्यवहार।
रक्त  नहीं,कलंक नहीं,
जय-पराजय  नहीं
यह तो परिभाषा,
मानव के स्वतंत्रता मूल्यों
मर्यादा की व्याख्या।
सम भाव सम्मान,
जीव-जीवन सब एक समान
सबके सुख-दु:ख भी एक समान।
सबकी आवश्यकता,
स्वतंत्रता एक समान
मूल रहस्य जीव,
आत्मा शासन
सत्ता की नीति-रीत राजनीति,
का दायित्व
बोध और ज्ञान।
कायर  नहीं,कल्पित नहीं,
भीषण  नहीं,विभिष् विभीषिका नहीं
फिर भी काल-कराल।
तूफानों को मोड़ देता,
आग को शीतल कर देता
विपरीत धाराओं
को भी साथ-साथ,
चलने को विवश करता
पर्वत की कठोर चट्टान भी,
पीछे हट मंजिल को जाने
का मार्ग प्रशस्थ कर देता।
काल खड़ा भी,
सामने बोलता-
तू तो मुसाफिर अहिंसा का,
मेरी निष्ठा और इरादों का
जाओ तुम दिग्विजयी हो,
आत्मा तुम महात्मा हो
गांधी युग कहता है तुम्हें,
तुम मानव-मानवता के प्रहरी
सिद्धान्त मूल्यों के निर्माता,
नहीं तुम मुझमें
तुम मेरे व्याख्याता।
मान-अपमान तिरस्कार,
से नहीं आहत
हर घड़ी पल प्रहर मजबूत,
इरादों से बढ़ते जाओ
बन मानवता युग के
पालक-संचालकll 
परिचयएन.एल.एम. त्रिपाठी का पूरा नाम नंदलाल मणी त्रिपाठी एवं साहित्यिक उपनाम पीताम्बर है। इनकी जन्मतिथि १० जनवरी १९६२ एवं जन्म स्थान-गोरखपुर है। आपका वर्तमान और स्थाई निवास गोरखपुर(उत्तर प्रदेश) में ही है। हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री त्रिपाठी की पूर्ण शिक्षा-परास्नातक हैl कार्यक्षेत्र-प्राचार्य(सरकारी बीमा प्रशिक्षण संस्थान) है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त युवा संवर्धन,बेटी बचाओ आंदोलन,महिला सशक्तिकरण विकलांग और अक्षम लोगों के लिए प्रभावी परिणाम परक सहयोग करते हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,नाटक,उपन्यास और कहानी है। प्रकाशन में आपके खाते में-अधूरा इंसान (उपन्यास),उड़ान का पक्षी,रिश्ते जीवन के(काव्य संग्रह)है तो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-भारतीय धर्म दर्शन अध्ययन है। लेखनी का उद्देश्य-समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-पूज्य माता-पिता,दादा और पूज्य डॉ. हरिवंशराय बच्चन हैं। विशेषज्ञता-सभी विषयों में स्नातकोत्तर तक शिक्षा दे सकने की क्षमता है।

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