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काम

सुरेश चन्द्र ‘सर्वहारा’
कोटा(राजस्थान)
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दौड़ नहीं हम अन्धी दौड़ें
करें धैर्य से अपने काम,
थक जाता है जब तन मन तो
आवश्यक होता विश्राम।
एक समय पर एक काम हो
होगी जिससे नहीं थकान,
काम करें जब सही ढंग से
बन पाती है तब पहचान।
मुश्किल से ही तट पाता है
दो नावों में हुआ सवार,
और कभी तो गवाँ संतुलन
डूबा करता है मँझधार।
कभी नहीं हम पा सकते हैं
एकसाथ ही सारी चीज,
जीवन में इससे भर जाते
क्रोध निराशा चिन्ता खीज।
एक बार में एक काम हो
दूजा उसके होने बाद,
नहीं करेंगे तब तनाव भी
जीवन की खुशियाँ बर्बाद॥

परिचय-सुरेश चन्द्र का लेखन में नाम `सर्वहारा` हैl जन्म २२ फरवरी १९६१ में उदयपुर(राजस्थान)में हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए.(संस्कृत एवं हिन्दी)हैl प्रकाशित कृतियों में-नागफनी,मन फिर हुआ उदास,मिट्टी से कटे लोग सहित पत्ता भर छाँव और पतझर के प्रतिबिम्ब(सभी काव्य संकलन)आदि ११ हैं। ऐसे ही-बाल गीत सुधा,बाल गीत पीयूष तथा बाल गीत सुमन आदि ७ बाल कविता संग्रह भी हैंl आप रेलवे से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त अनुभाग अधिकारी होकर स्वतंत्र लेखन में हैं। आपका बसेरा कोटा(राजस्थान)में हैl

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