संगोष्ठी…
दिल्ली।
भाषा फैलती है और फैलना उसका स्वभाव है। एक से अधिक भाषा का ज्ञान होना अपनी भाषा को भूलना नहीं होता, बल्कि वह दूसरी संस्कृति, सभ्यता और साहित्य से जुड़ने का माध्यम है। नए शब्द जुड़ने से भाषा अवश्य समृद्ध होती है, लेकिन हिंदी या किसी भी भाषा के प्रचलित शब्दों की जगह आप अंग्रेजी का शब्द प्रयोग करते हैं तो संबंधित भाषा अपना चलता रूप भी खो बैठती है।
वक्ता के तौर पर डॉ. वरुण कुमार (रेल मंत्रालय से.नि.) ने यह बात खालसा महाविद्यालय में आयोजित संगोष्ठी में ‘हिंदी एकःरूप अनेक’ विषय पर कही। श्री गुरु तेग बहादुर खालसा महाविद्यालय (दिल्ली विवि के राजभाषा प्रकोष्ठ) ने ‘राजभाषा सप्ताह’ का यह आयोजन प्राचार्य डॉ. गुरमोहिंदर सिंह के नेतृत्व व प्रो. स्मिता मिश्र (राजभाषा प्रकोष्ठ) के निर्देशन में किया, जिसमें गैर शैक्षणिक कर्मियों के लिए विभिन्न स्पर्धा हुई। सप्ताह के समापन समारोह में डॉ. कुमार सहित, डॉ. ओम निश्चल (कवि व समीक्षक), बुल्गारिया से डॉ. मोना कौशिक और मारिशस से प्रो. कृष्ण कुमार आभासी माध्यम द्वारा संगोष्ठी में उपस्थित रहे। प्रभारी प्रो. मिश्र ने सभी वक्ताओं का स्वागत किया तथा प्रकोष्ठ की की जानकारी दी। उन्होंने ए.आई. के आवश्यकता से अधिक प्रयोग को सृजनात्मकता के लिए संकट बताया। डॉ. निश्चल ने हिंदी भाषा के प्रशासनिक, व्यावसायिक व अकादमिक जगत में हिंदी के विशिष्ट स्वरूप, ज्ञान और उपयोगिता के संदर्भ में हिंदी वैविध्य पर अपने विचार व्यक्त किए, साथ ही लगभग प्रत्येक क्षेत्र में हिंदी के होने में सरकार तथा विभिन्न समितियों के अथक प्रयास की सराहना की। मॉरिशस में हिंदी के होने का इतिहास, साहित्य तथा वहीं के समाज में हिंदी की स्थिति के संबंध में प्रो. कृष्ण कुमार झा ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। डॉ. कौशिक ने व्याकरण की उपयोगिता पर विचार व्यक्त किए। विजेताओं को आमंत्रित अतिथियों द्वारा पुरस्कृत किया गया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. गगन दीप कौर (सहा. प्रोफेसर, हिंदी) ने किया। डॉ. अमरेंद कुमार पांडे (सहायक प्रोफेसर, हिंदी) ने सभी का धन्यवाद व्यक्त किया।