रश्मि लहर
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
**************************************************
गुंजन की जैसे ही नौकरी लगी, घर में सब चिन्तित हो गए कि कैसे रहेगी वह दूसरे शहर में… वो भी अकेले ? गुंजन नियम से चलने वाली बिटिया थी। आजकल के बच्चों से थोड़ा हटकर…, एकदम पुराने समय की जिम्मेदार बच्ची थी। न पिज्जा-बर्गर का शौक, न पार्लर का… न अंग्रेजी गानों पर डांस करती थी, न बाहर घूमने की जिद करती थी। उसने नए शहर में, नया ऑफिस ज्वाइन कर लिया था। यहाँ भी उसकी मित्रता अजीब चीजों से हो गई थी, जैसे-एक आम का पेड़ उसका सुख-दु:ख का साथी था, तो कालोनी के कुत्ते एवं उनके बच्चे सब उसके प्रगाढ़ मित्र थे। भले वह स्वयं के लिए रोटी न बनाए, पर उनके लिए जरूर बनाती। गुंजन अपने कार्यालय की लोकप्रिय कर्मचारी थी। वह जिस विभाग में थी, वहाँ गन्ने में रिसर्च होती थी। बड़े-बड़े खेत थे तथा नीलगाय, साँप, अजगर सब प्रकार के जानवर-जीव-जंतु थे। गुंजन को जीवन में किसी से भी डर नहीं लगता था, वो सबके साथ एक मैत्री भाव रखती थी, पर उसके इस स्वभाव के कारण उससे कई लोग बहुत चिढ़ते थे तथा दूरी बनाकर रहते थे। कई महिलाएं उसको देखते ही मुस्करा देती थीं और कहने लगती थीं कि “चल दी कुत्तों के पास ?” तो कई लड़के उसके मुँह पर कह देते थे “अरे गुंजन… हम लोगों से भी दोस्ती करो न…” वह हँस कर सबको टाल देती।
दिन बीत रहे थे कि एक दिन वह हो गया, जिसकी किसी ने कल्पना ही नहीं की थी। रोज की तरह गुंजन कार्यालय से पैदल ही घर आ रही थी कि उसको लगा हवा ठंडी और तेज चलने लगी है, तो वो तेज कदमों से घर की तरफ चल पड़ी। आज उसका मन किसी अनजानी आशंका से धड़क रहा था। अपने में खोई हुई वह मोड़ तक पहुॅंची ही थी कि अचानक खेतों के बीच से २ लम्बे-चौड़े आदमी निकले और उसके सामने आकर खड़े हो गए।
गुंजन का मन अचानक अनहोनी की आशंका से काँप उठा। तब तक एक आदमी आगे बढ़ा और बोला-“कब तक पेड़- पौधों के साथ रहोगी यार, आओ! मेरी बाँहों में आ जाओ…।”
उन दोनों के इरादे भाँप कर गुंजन जोर से चीखी…-“टामी… शेरू… डमी बचाओ” और वह तेजी से भागी, पर जब समय खराब होता है, तो कुछ न कुछ अवरोध भी आते रहते हैं। उसका पैर एक सुतली में फँसा और लुढ़कती हुई सड़क के किनारे पर पहुँच गई। वे दोनों उसके पीछे वीभत्स हँसी के साथ आ रहे थे…-“भागो मत मेरी जान, यहाँ कोई नहीं आएगा…” कहकर वे जैसे ही आगे बढ़े, खेत से निकल कर शेरू ने उनके चेहरे पर पंजे से वार किया।
उधर, डमी भी गुर्राता हुआ दौड़ा…। थर-थर काँपती हुई गुंजन को अचानक याद आया कि कार्यालय में सब लोग आज बस से मूवी का प्रोग्राम बनाकर निकले हैं। वह अपनी नादानी पर स्तब्ध रह गई थी। काश! आज किसी ओला से आ जाती…। सोचते हुए वह अपनी असंयत साँसों को रोकती हुई उठी तो सामने का दृश्य देखकर उसके रोंगटे खड़े हो गए। चारों कुत्तों ने उन दोनों शैतानों को घेर रखा था और आगे नहीं बढ़ने दे रहे थे। यकायक शेरू एक आदमी की छाती पर चढ़ गया और जगह-जगह काटने लगा। तब तक छोटी डाॅगी उसके पास आई और कुर्ता खींचकर उसे घर को जाने का इशारा करने लगी। पलभर के लिए वह अपना सारा डर भूल गई और चीखने लगी- “छोड़ना नहीं शेरू!, मार और मार” कहकर वह भावावेश में रोने लगी।
वे दोनों जमीन पर गिर गए, चारों कुत्तों ने उन्हे अधमरा कर दिया था। वह चुपचाप रोती-रोती अपने घर की तरफ चल पड़ी और अपने नि:स्वार्थ दोस्तों पर गर्व करती हुई घर पहुँच गई। घर के भीतर पहुँचते ही वह जोर-जोर से रोने लगी। तब तक दरवाजे पर उसको खटका-सा महसूस हुआ तो वह घबराकर उठी और झरोखे से झाॅंकने लगी। बाहर देखा तो याद आया कि घबराहट में वह अपना पर्स सड़क से उठाना भूल गई थी। शेरू वह पर्स मुँह में दबाए सामने खड़ा था। उसके पीछे तीनों कुत्ते बहुत स्नेह के साथ भूं-भूं करके दुम हिला रहे थे। गुंजन उन सब पर हाथ फेरती रही और एक अनोखे प्रेम भाव से विह्वल हो उन सबको कुछ खिलाने के लिए उठ गई…।