पटना (बिहार)।
कुछ ऐसे रचनाकार भी हैं, जो सभी विधाओं में लेखन करते हुए भी लघुकथा-सृजन का श्रेष्ठ उपयोग कर रहे हैं। किसी भी रचनाकार की सभी लघुकथाएँ उत्कृष्ट नहीं होती, किंतु जो रचनाकार निरंतर बेहतर सृजन करते हैं और लघुकथा के मर्म व सिद्धांत को समझते हैं, उनकी अधिकांश लघुकथाएँ पठनीय एवं संग्रहणीय होती हैं। ऐसे ही प्रयोगधर्मी व सशक्त रचना कारों में एक नाम है योगराज प्रभाकर का।
योगराज जी की लघुकथाएं पाठकों को आत्ममंथन के लिए बाध्य करती है।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आभासी माध्यम से लघुकथा सम्मेलन का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त विचार व्यक्त किए। अध्यक्षीय वक्तव्य में विख्यात साहित्यकार योगराज प्रभाकर ने कहा, कि आज की पीढ़ी लघुकथा-विधा को लेकर काफी गंभीर है। इस लघुकथा गोष्ठी में प्रस्तुत रचनाओं ने समाज की संवेदनाओं और यथार्थ को उजागर किया तथा श्रोताओं को गहराई तक प्रभावित किया है। विविध शैलियों और विषय-वस्तु ने गोष्ठी को समृद्ध बनाया। स्पष्ट है कि लघुकथा आज साहित्य की सबसे सशक्त और प्रभावी विधाओं में से एक है, जो पाठक और श्रोता दोनों को गहन चिंतन हेतु प्रेरित करती है।
विशिष्ट अतिथि डॉ. पुष्पा जमुआर ने कहा कि योगराज प्रभाकर की लघुकथा ‘पीर परबत-सी’ का शीर्षक काव्यात्मक ध्वनि से युक्त है, जो मुझे विशेष रूप से आकर्षक लगा। यह कथा मूलतः बालिका भ्रूण हत्या पर पौराणिक कथा को आधार बनाकर लिखी गई है।
उनकी दूसरी लघुकथा ‘जननी’ भी नारी विमर्श की सशक्त अभिव्यक्ति है।
लघुकथा-पाठ करने वाले प्रमुख लघुकथाकारों में सिद्धेश्वर, नरेंद्र कौर छाबड़ा, वर्षा अग्रवाल, शेख शहजाद व चितरंजन भारती आदि रहे। ऋचा वर्मा ने धन्यवाद व्यक्त किया।