अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर (मध्यप्रदेश)
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‘इंसानियत’ सुनने में एक शब्द है, लेकिन स्वयं के भीतर अनगिनत भावनाएँ समेटे हुए है। यह केवल किसी की मदद करना या दूसरों के लिए त्याग करना भर नहीं है, बल्कि इंसानियत वह ऊर्जा, अच्छाई और शक्ति है, जिसके सहारे समाज जीवित रहता है तथा दुनिया चलती है।
कहना गलत नहीं होगा कि इंसानियत बनाम मानवता एक बीज की तरह है। छोटा, साधारण और अनदेखा-सा, लेकिन यदि इसे सही मन, सही सोच और सही कर्मों की मिट्टी में बोया जाए, तो यह अंकुरित होकर सुख, समृद्धि, शांति और प्रेम के अनगिनत फूलों में परिवर्तित हो जाता है।
आज हम विज्ञान, तकनीक और आधुनिकता में तो बहुत आगे बढ़ गए हैं, परन्तु इंसानियत की जमीन कहीं-कहीं सूखती दिखाई देती है। अपनों के पास अपनों के लिए समय नहीं है, रिश्तों में दूरियाँ बढ़ रही हैं, दोस्त कम हो गए हैं, संवेदनाएं कम होती जा रही हैं और लोग से अधिक अधिक आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं। ऐसे समय में जरूरत है कि हम इंसानियत को अपने जीवन का मूल आधार बनाएं। यानी रिश्तों को दिल से निभाएं, यथासंभव मदद करें एवं हर अच्छे काम के लिए आगे बढ़कर हाथ दें, तभी इंसानियत की महक और बढ़ेगी।
इंसानियत वह कला है, जिसमें इंसान, इंसान होकर जीना सीखता है। यह वह भाव है जहाँ धर्म, जाति, भाषा, रंग, देश और सीमाएँ बाधा नहीं बनतीं। यह वह ताकत है, जो हमें बताती है कि हम सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। यदि किसी को दर्द होता है, तो हमारा दिल भी दुखे। ऐसा होना ही इंसान एवं इंसानियत की निशानी है। यदि किसी के चेहरे पर किसी कारण से मुस्कान आए, तो हमें भी खुशी हो। यही भाव इंसानियत का आधार है, मगर आज दूसरे की खुशी से जलन का पौधा पनप रहा है, जो मानव समाज के लिए बेहद घातक है।
हमें समझना होगा कि इंसानियत का रिश्ता शिक्षा, डिग्री या धन से नहीं, बल्कि दिल की करुणा से होता है। एक अनपढ़ व्यक्ति भी इंसानियत की मिसाल बन सकता है, प्रेरणा पुंज हो सकता है, जबकि कभी-कभी एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी इसका अर्थ नहीं समझ पाता है। खास बात यह है कि किसी व्यक्ति को जबरन इंसानियत सिखाई नहीं जा सकती, यह तो बस महसूस की जाती है। हम दूसरों के लिए कितने चिंतित हैं, उनकी कितनी मदद कर सकते हैं और उपयोगी हैं, यही व्यवहार और विचार इसका असली मापदंड है।
आज यदि दुनिया में हर व्यक्ति इंसानियत को अपनाए, तो युद्ध की जगह संवाद होगा, नफरत की जगह प्रेम होगा और हिंसा की जगह अपनापन होगा। एक-दूसरे के लिए अच्छा इंसान बनकर मदद के लिए खड़ा होना ही सबसे बड़ा धर्म है। जब कोई भूखा हो तो रोटियाँ बांटना, जब कोई दुखी हो तो सहारा देना और जब कोई डर में हो तो उसे सुरक्षा देना, यही इंसानियत है, धर्म है।
आज आवश्यकता इस बात की नहीं, कि हम बड़े-बड़े भाषण दें या बड़ी-बड़ी बातें करें, बल्कि जरूरत है कि हम छोटे-छोटे कर्म में इंसानियत को सबको दिखाएं एवं जीवित रखें। सड़क पार करने को तरसते नेत्रहीन, सड़क पर गिरा बूढ़ा आदमी, विद्यालय जाने की चाह रखने वाला गरीब बच्चा और अस्पताल में दवा के अभाव में तड़पता रोगी- इनके लिए हमें इंसान बनना पड़ेगा और बनना भी चाहिए, क्योंकि ये सब हमारे सहयोग के इंतजार में हैं। इससे अच्छा क्या होगा कि हमारे एक कदम से उनको सड़क का छोर मिल जाए, एक शब्द उनको मुस्कान देदे, वो विद्यालय पहुँच जाए और मदद का भाव उनके लिए रोशनी बन जाए।
भागती-दौड़ती ज़िंदगी के लिए ‘इंसानियत’ वह निवेश है, जिसका फायदा हमें केवल इस जीवन में ही नहीं मिलता, बल्कि यह पीढ़ियों को बदल देता है। अगर हम चाहते हैं कि आने वाली दुनिया बेहतर हो, हमें भी कोई सहयोग मिले, कोई हमारी बात समझे, कोई हमारे कहे से लालच नहीं करे तो इसके लिए सबसे पहले हमें बेहतर इंसान बनना होगा। इसलिए, गला काट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में अपनी इंसानियत को जिंदा रखिए, इसे अपने जीवन में जगह दीजिए। इसे सोच में लाएँ, व्यवहार में लाएँ और इसे आदत ही बना लें, क्योंकि इंसानियत का बीज जितना फैलता है, उतनी ही दुनिया खूबसूरत होती जाती है।
याद रखिए कि इंसानियत वह धरोहर है, जिसे अपनाने वाले कभी खाली नहीं रहते, बल्कि उनके भीतर हमेशा प्रेम, शांति और समृद्धि के फूल खिलते रहते हैं।
