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एआई:नौकरी संकुचन, बड़ी चुनौती

ललित गर्ग

दिल्ली
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भारत जैसे युवाओं वाले और उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश में तकनीकी विकास के प्रति उत्साह हमेशा गहरा रहा है। डिजिटल इंडिया, स्टार्ट-अप क्रांति और कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) जैसी तकनीकें समाज, राष्ट्र और अर्थव्यवस्था में तीव्र बदलाव की सारथी बनी हैं। हर वर्ग और क्षेत्र ने इस परिवर्तन को आशा एवं सकारात्मकता के साथ अपनाया है, इस उम्मीद में कि तकनीकी तरक्की के साथ रोज़गार के नए अवसर भी सृजित होंगे, लेकिन हाल ही में सूचना प्रोद्योगिकी क्षेत्र की प्रतिष्ठित कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज द्वारा १२ हजार से अधिक कर्मचारियों की छंटनी की घोषणा ने इस उम्मीद पर पानी फेर दिया और बड़ा झटका दिया है। निस्संदेह, यह फैसला सूचना प्रोद्योगिकी क्षेत्र में आसन्न संकट की आहट को ही दर्शाता है। छंटनी बाबत टीसीएस की दलील है कि इन नौकरियों में कटौती कौशल की कमी और अपने विकसित होते व्यावसायिक मॉडल में कुछ कर्मचारियों को फिर से नियुक्त करने में असमर्थता के चलते की गई है। यह संख्या कम्पनी के कुल कार्यबल का लगभग २ प्रतिशत है, और मुख्यतः मध्यम और वरिष्ठ स्तर के कर्मचारी इससे प्रभावित होंगे।
एआई और ऑटोमेशन केवल तकनीक नहीं हैं, वे कार्य संस्कृति, संगठन संरचना और मानव संसाधन नीति को मूल रूप से बदल रहे हैं। कई रिपोर्टों के अनुसार एआई से प्रेरित उत्पादकता और लागत में कटौती की प्रवृत्ति बढ़ रही है। उदाहरण के तौर पर अमेजॉन ने ३० हजार सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन को एआई की मदद से मात्र ६ महीने में अपग्रेड किया, जो सामान्यतः डेवलपर्स को करने में १ वर्ष लगता। इससे कम्पनी को लगभग २५० मिलियन डॉलर की बचत हुई। इसी प्रकार माइक्रोसोफ्ट और मेटा जैसी कम्पनियों में कोडिंग का २०-५० प्रतिशत कार्य एआई से कराया जा रहा है।
भारत में एआई का प्रसार अभी अमेरिका या यूरोप की तुलना में सीमित है, लेकिन इसकी गति तीव्र है। देश के स्टार्ट-अप और आईटी क्षेत्र में छंटनियों की संख्या बढ़ रही है। केवल वर्ष २०२५ के शुरूआती ५ महीनों में भारत में ३६०० से अधिक कर्मचारियों को नौकरी से हटाया गया, जिसमें एआई आधारित लागत नियंत्रण एक प्रमुख कारण रहा। यह स्पष्ट करता है कि एआई के कारण दोहराव वाले कार्यों की उपयोगिता घट रही है और उनकी जगह कुशल तकनीक ले रही है। मौजूदा समय में इसमें दो राय नहीं कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता कारोबार के नियमों में मौलिक बदलाव के चलते भविष्य के लिए तैयार रहना हर व्यावसायिक उद्यम के एजेंडे में सबसे ऊपर होगा। इस नई हकीकत को देखते हुए अनेक सवाल सबसे ज्यादा विचलित करने वाले बनकर उभर रहे हैं कि क्या यह तकनीकी बदलाव अनिवार्य रूप से कर्मचारियों की कीमत पर होना चाहिए ? छंटनी की चपेट में युवाओं का भविष्य क्या तकनीकी प्रगति के नाम पर मानव श्रम पर आघात नहीं है ? क्या स्मार्ट मशीनों के दौर में भारत में रोजगार को नई चुनौती और इंसानों को हताशा में धकेलना नहीं है ? एआई का विस्तार यानी नौकरी का संकुचन क्या भारत के लिए बड़ी चेतावनी की घड़ी बन रहा है ?

इन प्रश्नों के परिप्रेक्ष्य में देश में बेरोजगारी का संकट किसी से छिपा नहीं है। देश में श्रमबल का कौशल विकास धीरे-धीरे गति पकड़ रहा है। सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों में आईटी पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है, लेकिन टीसीएस के इस फैसले से आईटी पाठ्यक्रमों में अध्ययन कर रहे उन लाखों छात्रों और डिग्री लेकर निकल रहे उत्साही अभियंताओं में निराशा व्याप्त होगी। भारत में बढ़ता रोजगार संकट केंद्र सरकार से निरंतर हस्तक्षेप की मांग करता है। देश ही नहीं, दुनिया में रोजगार का संकुचन एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। गोल्डमैंन सोच्स की रिपोर्ट के अनुसार एआई और ऑटोमेशन के चलते दुनिया भर में लगभग ३०० मिलियन नौकरियाँ प्रभावित हो सकती हैं। विश्व आर्थिक मंच का आकलन है कि २०३० तक ९२ मिलियन नौकरियाँ खत्म, लेकिन उसी अवधि में १७० मिलियन नई भी पैदा होंगी। यह एक दोधारी तलवार है, जो बदलेगा, बचेगा;जो रुकेगा, वो हाशिए पर जाएगा।
टीसीएस की छंटनी पर विशेषज्ञों का मानना है कि इस निर्णय से न केवल कम्पनी के भीतर, बल्कि समूचे आईटी क्षेत्र में आशंका, आक्रोश एवं अनिश्चितता का माहौल बन गया है। खासकर युवाओं और आईटी की पढ़ाई कर रहे लाखों विद्यार्थियों के लिए यह मानसिक झटका है। तकनीकी शिक्षा में दाखिले बढ़ रहे हैं, लेकिन रोजगार के अवसर घटते जा रहे हैं। यह असंतुलन देश की सामाजिक स्थिरता को भी प्रभावित कर सकता है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती हैं कि विश्व स्तर पर लगभग ४० प्रतिशत नौकरी एआई के कारण जोखिम में हैं। भारत में अनुमान है कि २०२५ तक १२-१८ मिलियन नौकरी एआई आधारित ऑटोमेशन के चलते प्रभावित हो सकती हैं। यह असंगति ही भविष्य में अधिक छंटनियों का कारण बन सकती है। एआई हर भूमिका को खत्म नहीं करेगा, बल्कि उसे पुनर्परिभाषित करेगा। जहां दोहराव और विश्लेषण की आवश्यकता है, वहाँ एआई प्रभावी होगा, लेकिन रचनात्मकता, सहानुभूति और निर्णय क्षमता जैसे गुणों में मानव की भूमिका बनी रहेगी। चिकित्सक, शिक्षक, वकील, पत्रकार जैसे पेशों में एआई सहयोगी के रूप में कार्य करेगा, प्रतिस्थापन के रूप में नहीं। मेटा के प्रमुख एआई वैज्ञानिक यान लेकुन के अनुसार, “एआई अधिकतर कार्यों का केवल एक हिस्सा ही कर सकता है, वह भी पूरी तरह परिपूर्ण नहीं। मानव श्रमिकों का सीधा प्रतिस्थापन संभव नहीं है।”

निश्चित तौर पर एआई और तकनीकी बदलाव अपरिहार्य हैं। सवाल यह है कि हम इसके लिए कितने तैयार हैं ? इसके लिए तीन प्रमुख कदम जरूरी हैं, पहला पुनःकौशल और सतत शिक्षा यानी कार्यबल को भविष्य के अनुरूप प्रशिक्षित करना होगा। डेटा साइंस, मशीन लर्निंग, एआई एथिक्स, सॉफ्ट स्किल्स जैसे क्षेत्रों में प्रशिक्षण अनिवार्य बनाना होगा। दूसरा नीतिगत समर्थन यानी सरकार को एआई नीति, डिजिटल समावेशन और श्रमिक सुरक्षा के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश तय करने होंगे। रोजगार खोने वालों के लिए पुनर्वास योजनाएं और कौशल अद्यतन कार्यक्रम आवश्यक हैं। तीसरा सांस्कृतिक और सामाजिक समायोजन यानी एआई को केवल तकनीकी नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन के रूप में भी देखा जाना चाहिए। तकनीकी बदलाव नई संभावनाएं लेकर आते हैं, लेकिन वे अनायास ही चुनौतियाँ भी खड़ी करते हैं। छंटनी से संदेश है कि एआई युग में केवल वही टिकेगा, जो परिवर्तनशील रहेगा। अब समय आ गया है कि हम तकनीक को नीति और जीवन-शैली का हिस्सा मानें।