सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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कलयुग की यह रीति सुहावन
जो मन भावे वही है पावन,
क्या बतलाएँ युवा जगत को-
भूल रहा निज रीति-नीति को।
बच्चों पर क्या दोष लगाएँ
उनको हम क्यों ग़लत बताएँ,
संस्कार की बात पुरानी-
हितकर है यह सबने मानी।
पर शिक्षा तो कॉन्वेंट में
सीखा सब उन्हीं के संग में,
अब क्यों कहते ढंग है बदला-
खान-पान व्यवहार है बदला।
घर में भी तो नहीं सिखाया नहीं
संस्कार का पाठ पढ़ाया,
अब बच्चे करते मनमानी-
कही तुम्हारी बात न मानी।
खुद को तुम्हें बदलना होगा,
सच्ची बात सम्हलना होगा।
अगर देश का भला चाहते,
पौरुष तुमको करना होगा॥