दिल्ली
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शिक्षा मंत्रालय के अन्तर्गत शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत में विद्यालयों की संख्या बढ़ रही है, पर विद्यालयीन छात्रों की संख्या घट रही है। संख्या घटना न केवल चिंताजनक और विचारणीय है, बल्कि नए भारत-सशक्त भारत निर्माण की एक बड़ी बाधा भी है। भारत में विद्यालयों की संख्या में करीब ५ हजार की बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्राथमिक, माध्यमिक और वरिष्ठ माध्यमिक स्तरों सहित १४,८९,११५ विद्यालय हैं। ये २६,५२,३५,८३० छात्रों को पढ़ाते हैं। इनमें से कुछ को उनकी प्रतिष्ठा, स्थापना के वर्षों, महत्वपूर्ण परिणामों, विपणन रणनीतियों आदि के कारण उच्च छात्र नामांकन प्राप्त होते हैं, लेकिन २०२२-२३ व २३-२४ के बीच नामांकन में ३७ लाख की कमी आई है। यह स्थिति अनेक सवाल खड़े करती है। क्या विद्यालयीन शिक्षा ज्यादातर बच्चों की पहुंच के बाहर है ? क्या शिक्षा का आकर्षण पहले की तुलना में घटा है ?
भारत में शिक्षा प्रणाली लाखों छात्रों के जीवन और भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अपने समृद्ध इतिहास और विविध संस्कृति के साथ, भारत में एक जटिल और विशाल शैक्षिक परिदृश्य है। महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। डेटा एग्रीगेशन प्लैटफॉर्म यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस की यह रिपोर्ट देश के विद्यालयों में हुए सुधार के साथ ही उन अहम दिक्कतों की भी झलक देती है, जिन्हें दूर किया जाना बाकी है। बुनियादी सुविधाओं की स्थिति बेहतर होने के बावजूद संख्या घटना गहन विमर्श का विषय है।
शिक्षा मानव-जीवन के विकास का आधार स्तंभ है। शिक्षा के अभाव में मानव-जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। यह मनुष्य को उत्कृष्टता एवं उच्चता के शिखर पर स्थापित करती है। यह गिरावट कमोबेश सभी श्रेणियों यानी लड़केलड़कियाँ, ओबीसी, अल्पसंख्यक आदि में है। जहां तक शिक्षा के बीच में छात्रों के शाला छोड़ने के मामलों की बात है तो इसमें सेकंडरी स्तर में होने वाली बढ़ोतरी ज्यादा परेशान करने वाली है। माध्यमिक विद्यालयों में जो ड्रॉपआउट दर ५.२ प्रतिशत है, वह सेकंडरी स्टेज में आकर १०.०२ प्रतिशत हो जाती है। इसके पीछे ओबीसी और एससी-एसटी श्रेणी के छात्रों को दाखिले के दौरान होने वाली जटिल प्रक्रिया, मुश्किलें और किसी अभावग्रस्त छात्र के लिए आर्थिक मदद या छात्रवृत्ति जैसी सुविधाओं की कमी का हाथ हो सकता है।
नामांकन की घटती संख्या को जाति के आधार पर अगर देखें, तो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के नामांकन में २५ लाख से अधिक, अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग में १२ लाख व अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के छात्रों में २ लाख की गिरावट हुई है। नामांकन से वंचित अल्प संख्यक छात्रों की संख्या ३ लाख है, जबकि इनमें से एक तिहाई मुस्लिम हैं। भारत में नई पीढ़ी को यथोचित शिक्षा नहीं मिल पा रही है। शिक्षा से वंचित रहने के जो कारण हैं, उनमें सबसे बड़ा गरीबी है। सरकारी स्तर पर सरकारों ने गरीब छात्रों के लिए अनेक इंतजाम किए हैं, पर इन इंतजामों का सभी तक समान रूप से पहुंचना आसान नहीं है। निचले स्तर पर शिक्षकों और शिक्षा कर्मचारियों को जितना सजग होना चाहिए, उतना सजग वे नहीं हो पा रहे हैं। भारत जैसे देश में शिक्षा एक अभियान है, इसके लिए अगर नियोजित एवं उत्साहपूर्ण माहौल न बनाया जाए, तो गरीब व वंचित बच्चों तक शिक्षा को पहुंचाना चुनौतीपूर्ण है।
भारत में शिक्षा क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव की जरूरत है। यदि हमें सर्वाेत्तम परिणाम प्राप्त करना है और सही दिशा में आगे बढ़ना है तो कई पहलुओं एवं मोर्चों पर काम करना आवश्यक है। हमारी आजादी के बाद से ही शिक्षा क्षेत्र में कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिन्होंने हमें दुनिया में एक विकसित राष्ट्र बनने से रोक दिया है। भारत में एक सभ्य शिक्षा प्रणाली के महत्व की जरूरत को समझते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नयी शिक्षा प्रणाली को नया आकार दिया जा रहा है और शिक्षा से जुड़े कई बड़े बदलाव किए जा रहे हैं। प्रणाली को आधुनिक बनाने और व्यावसायिक प्रशिक्षण शुरू करने के प्रयास हो रहे हैं।
बहरहाल, यह खुशी की बात है कि अब भारत के ९१.७ प्रतिशत विद्यालयों तक बिजली पहुंच चुकी है। देश में ९८ प्रतिशत से ज्यादा विद्यालयों तक पेयजल के साथ ही टॉयलेट की सुविधा पहुंच चुकी है। विद्यालयों को संसाधन संपन्न बनाने के साथ ही शिक्षकों और पुस्तकों की गुणवत्ता के स्तर पर भी बहुत मजबूत करने की जरूरत है।
आज के समय में जब हमें बड़े पैमाने पर कुशल कामगारों की जरूरत पड़ेगी, तब किसी का कंप्यूटर शिक्षा से वंचित होना बहुत महंगा पड़ेगा। आज के समय में हर छात्र या हर नागरिक को कंप्यूटर और इंटरनेट का सामान्य ज्ञान होना ही चाहिए। इसी से भारत दुनिया की तीसरी आर्थिक व्यवस्था एवं विश्व गुरु होने का दर्जा पा सकेगा, क्योंकि शिक्षा दृष्टि और दृष्टिकोण को बढ़ाती है, जिससे समाज में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा होती है। इससे उन्नत एवं चरित्रसम्पन्न नागरिकों का निर्माण होता है एवं देश विकास की ओर अग्रसर होता है।