डॉ. कुमारी कुन्दन
पटना(बिहार)
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सावन पावन-मन भावन…
क्या उनको खबर नहीं है !
आया है ये पावन सावन
आया बहार लेकर फिर भी,
सूना है मेरे मन का आँगन ।
हर शय पर है यहाँ रवानी,
हर शय पर है यहाँ तराना
मुझको क्यों ना याद आए,
वो तेरा, जालिम मुस्कुराना
ले जा मेरी सदाएं ले जा,
वो प्यारा-सा पावन सावन
जल में डूबे ताल-तलैया_
फिर क्यों प्यासे मेरे नयन।
क्या उनको खबर नहीं है,
आया है ये पावन सावन
दिल लेकर ही, देते दिल,
हाय! फिर ये कैसी उलझन।
हम इन्तजार में हैं बैठे,
प्यार भरा अपना दामन
भरी बहार में भी, फिर क्यूँ,
सूना है मेरे मन का आँगन।
सावन से ये तो सीखो,
कैसे आया है, बहार लेकर
काश! तुम भी आ जाते यूँ ही,
अपनी आँखों में प्यार लेकर।
क्यों इतना तुम हो सताते,
चुपके से दिल में रहकर
ऐसा ना हो कि एक दिन,
चली जाए मेरी जां निकलकर।
छाई है बहार, हर शय पर
महका है धरती का आँगन।
प्यार के बदले प्यार ही लेते,
खिल उठता, मन का आँगन॥
