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तुम, मैं और बरसात

संजय एम. वासनिक
मुम्बई (महाराष्ट्र)
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तुम और बरसात,
दोनों ही एक जैसे
यादों मे बरसते रहते हो,
कभी रिमझिम…
कभी मूसलधार,
दिल को पिघला देने वाले
कभी प्रेम से सर्द,
कभी आँखों की पलकें
भीगी उफनती हुई…,
नदियों जैसे…।

भीगा हुआ रास्ता,
कहीं रुका हुआ पानी
तुम भी नि:शब्द,
मैं भी गुमसुम
हल्की सी चाहत,
और पलकों में भीगे गीत…।

वो हल्का-सा सुरूर,
मन में उठी उलझनें
तुम भी बेचैन,
मैं भी उलझा हुआ
साँसों में रुके हुए शब्द…।

वो रुकी हुई हवाएं और,
नि:शब्द तूफ़ान की आवाज
तुम घुमंतू और मैं खुद के पास,
पागल सपनों का दीवाना
तुम्हारा वापस जाने का बहाना,
और क्षितिज का फिर से बुलाना
तुम तुम्हारी और मैं मेरा।
दोनों के भीगे हुए दिल…
यही है बरसात का तराना ॥

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