पटना (बिहार)।
जनभाषा में न्याय का संघर्ष…
पटना उच्च न्यायालय में हिन्दी में भी रिट और कर-याचिकाएँ की जा सकें, इसलिए बिहार की मंत्री परिषद में एक प्रस्ताव पारित किया गया था, किंतु उक्त निर्णय के आलोक में अब तक अधिसूचना निर्गत नहीं हो पायी हैं, जिसके कारण अभी भी हिन्दी में याचिकाकर्ताओं के समक्ष बाधाएँ आ रही हैं। राज्य सरकार को यथाशीघ्र अधिसूचना निर्गत करनी चाहिए।
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन (दिल्ली) द्वारा आयोजित संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए संगठन के अध्यक्ष और सुप्रसिद्ध समाजसेवी हरपाल सिंह राणा ने प्रदेश शासन से यह मांग की। उन्होंने कहा कि यह आश्चर्य का विषय है कि बिहार में भी हिन्दी के लिए वह काम नहीं हो पा रहा है, जिसकी अपेक्षा की जाती है। सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने श्री राणा के विचारों से सहमति जताते हुए कहा कि हिन्दी को राजकीय भाषा घोषित करने वाले देश के पहले राज्य बिहार में भी हिन्दी की उपेक्षा हो, यह दुःख पहुँचाने वाला है। उन्होंने परिषद की बैठक १९ सितम्बर, २०२३ में पारित प्रस्ताव संख्या-३४ को पढ़कर सुनाया।
जनभाषा के लिए न्यायालयों में आंदोलनरत चर्चित अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद ने कहा कि उक्त अधिसूचना निर्गत नहीं होने से पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच भ्रम की स्थिति बनी हुई है। इस कारण से हिन्दी की बात करने वाले अधिवक्ताओं के साथ भेदभाव किया जा रहा है। उल्लेखनीय है, कि वैश्विक हिंदी सम्मेलन द्वारा भी पटना उच्च न्यायालय में सभी न्यायिक कार्य भारत और बिहार राज्य की राजभाषा और वहाँ की जनभाषा हिंदी में करने के लिए आवाज़ उठाई जाती रही है।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)