पटना (बिहार)।
मनीषी विद्वान, उदारमना व्यवसायी और हिन्दी के अनन्य भक्त रामधारी प्रसाद ‘विशारद’ के सदप्रयास और सक्रियता से ही वर्ष १९१९ में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना हुई थी। वे इसके मुख्य सूत्रधार थे। सबसे पहले इनके ही मन में प्रांतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना का विचार आया और देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद की स्वीकृति प्राप्त कर हिन्दी सेवियों और हिन्दी-प्रेमियों का आह्वान किया। सम्मेलन के संचालन और उन्नयन में उनका सर्वश्रेष्ठ योगदान था। हिन्दी के प्रचार-प्रसार और उन्नयन में अपने तपो प्रसूत संकल्प के लिए वे सदा स्मरण किए जाते रहेंगे।
‘विशारद’ जी की १२५वीं जयंती पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह और लघुकथा गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने यह बात कही। इस अवसर पर बिहार राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष बनाए जाने के उपलक्ष्य में सम्मेलन की प्रवक्ता और विदुषी पत्रकार प्रो. अप्सरा का सम्मेलन की ओर से अभिनन्दन किया गया। प्रो. अप्सरा ने आभार प्रकट करते हुए कहा कि यदि सम्मेलन चाहे तो महिला आयोग साहित्य सम्मेलन के साथ मिलकर महिलाओं की जागरूकता के लिए संगोष्ठियों का आयोजन करना चाहेगा।
इस अवसर पर गोष्ठी में, डॉ. पूनम आनन्द ने ‘संयोग’, विभा रानी श्रीवास्तव ने ‘स्फुर दीप्ति’, शमा कौसर ‘शमा’ ने ‘गजल’ और सिद्धेश्वर ने ‘माँ की ममता’ आदि शीर्षक से पाठ किया।
मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।