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वो छुटपन की होली…

बबीता प्रजापति ‘वाणी’
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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जीवन और रंग…

वो छुटपन की होली,
छोटी पिचकारियाँ
चढ़ के अटारियाँ,
मारे पिचकारी की गोली।
वो छुटपन की होली…

भांग का नाम लेना पाप था,
किले के नीचे सांप था
खाते थे आम-संतरा-इमली की गोली
वो छुटपन की…।

गुझिया-पपड़ियाँ खूब खाते,
होली की आग में बाटी बनाते
भाभियाँ सबसे करती ठिठोली,
वो छुटपन की होली…।

चेहरे किसी के समझ न आते,
सब मिलकर डीजे बजाते।
खाकर भांग मस्त हो टोली,
वो छुटपन की होली…॥